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उसने सोने की मूर्तियाँ पत्थर से तुड़वा डाली। महलं, किला तथा मन्दिर तुड़वा डाले गये। लकड़ी के खम्मों को जलवा दिया गया। (३२) झायन की नींव इस तरह खोद डाली गई कि सैनिक धन सम्पत्ति द्वारा मालामाल हो गये। मन्दिरों से आवाज आने लगी कि शायद कोई अन्य महमूद जीवित हो गया। दो पीतल की मूर्तियां जिनमें से प्रत्येक एक हजार मन के लगभग थी तुड़वा डाली गई और उनके टुकड़ों को लोगों को दे दिया गया कि वे (देहली) लौटकर उन्हें मस्जिद के द्वार पर फेंक दें। तत्पश्चात् दो सेनाएँ दो सरदारों की अधीनता में भेजी गई। एक सेना का सरदार मलिक खुर्रम था और दूसरी सेना का सरदार महमूद सर जानदार था । ( ३३ ) झायन से भागकर कुछ काफिर पहाड़ी के दामन में छिप गये थे। मलिक खुर्रम सूचना पाते ही वहाँ पहुँच गया और अत्यधिक लोगों को बन्दी बना लिया। असंख्य पशु भी प्राप्त हुए। मलिक दासों को लेकर सुल्तान की सेवा में उपस्थित हुआ। सर जानदार ने चंबल तथा कुंवारी नदी पार करके मालवा की सीमा पर धावा मारा और वहाँ बहुत लूट मार की। सुल्तान ने झायन से प्रस्थान किया।' जलालुद्दीन के समय के संघर्ष का कुछ वर्णन अमीर खुसरो के तुगलक नामे में भी है। जिसका रचना काल सन् १३२० है। खुसरोखान पर विजय के बाद तुगलकशाह के भाषण को सुनकर लोगों ने कहा, "हे अमीर, तू अपने गुणों को दूसरों के नाम से क्यों बताता है। हम लोगों को तेरे विषय में पूर्ण जानकारी है, जिस समय बादशाह ( जलालुद्दीन खल्जी ) ने रणथम्बोर को घेर लिया और अपनी सेना के चारों ओर एक घेरा तैयार कर लिया तो उस समय राय
१ खलजी कालीन भारत, पृष्ठ १५३-५४ .
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