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________________ दो फरसंग की दूरी पर था, किन्तु बीच में बड़ी कठिन पहाड़ियाँ थीं । शाही सेना एक ही धावे में पहाड़ियों में प्रविष्ट हो गई। उसके वहाँ पहुँच जाने से झायन में भी हलचल मच गई। राय को जब सूचना मिली तो उसके हाथ-पैर फूल गए। उसने साहिनी को बुलाया जो हिन्दू नहीं, अपितु लोहे का पहाड़ था और उसके अधीन चालीस हजार सैनिक थे जो मालवा तथा गुजरात तक धावे मार चुके थे। ( २७-२८) उससे युद्ध करने के लिये कहा । उसने दस हजार सैनिक एकत्रित किये। वे लोग झायन से शीघ्रा. तिशीघ्र चल खड़े हुए । तुर्क धनुर्धारियों ने बाणों की वर्षा प्रारम्भ कर दी। (७९) घमसान युद्ध होने लगा। साहिनी माग गया। एक ही धावे में हजारों रावत मारे गए। तुर्की की सेना का केवल एक खासादार मारा गया। झायन में कोलाहल मच गया। रातों रात राय और उसके पीछे बहुत से हिन्दू झायन से रणथम्बोर की पहाड़ियों की ओर भाग गए। ( ३० ) शाही सैनिक विजय प्राप्त करके रणभूमि से सुल्तान की सेवा में उपस्थित हो गए। बन्दी रावतों को पेश किया गया। जब लूट की धन सम्पत्ति पेश की गई तो सुल्तान बड़ा प्रसन्न हुआ।... तीसरे दिन दोपहर में सुल्तान मायन पहुँचा और राय के महल में उतरा। महल की सजावट और कारीगरी देखकर वह चकित रह गया। वह महल हिन्दुओं का स्वर्ग ज्ञात होता था। चूने की दीवारें आइने के समान थीं। उसमें चन्दन की लकड़ियाँ लगी थीं। बादशाह कुछ समय तक उस महल में रहकर बड़ा प्रसन्न हुआ।. वहाँ से निकल कर उसने मन्दिरों और उद्यानों की सैर की। मूर्तियों को देखकर वह आश्चर्य में पड़ गया। उस दिन तो वह मूर्तियों को देखकर वापस हो गया। दूसरे दिन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003823
Book TitleHammirayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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