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राजस्थान पुरातत्त्व मन्दिर सं० ४९०२ पर एक ग्रन्थ का आरम्म 'श्रीगने साय नमः' हमीराइन लीषतै शब्दों से होता है। किन्तु इसका आरंभ गणेशवन्दन है। उसके बाद सरस्वती की आराधना कवित्त है, जिसमें कृति का नाम 'हमीररासो' है। अन्तिम कवित्त में, जिसकी संख्या २८५ है, फिर पुस्तक 'हमीराइन' ग्रंथ के नाम से निर्दिष्ट है। समस्त ग्रन्थ देखने पर कुछ निश्चित रूप से लिखना सम्भव है। आरम्म दूसरी हमीरायण से कुछ भिन्न है।
आगरे के श्री उदयशङ्कर शास्त्री के पास एक कृति है जिसका नाम "पातसाह अलावदीन चहुवान हमीर की वचनका भट्ट मोहिल कृत है।" किन्तु कृति के अन्दर कवि का नाम मल्ल है जो हम्मीर के कवित्तों के कर्ता मल्ल से भिन्न तथा पर्याप्त अर्वाचीन है। ___ इस ग्रंथ का आरम्भ गणपति की स्तुति से है। रणथम्भोर के दुर्ग का भी अच्छा वर्णन है ( ७-१४ ) । इसके बाद वनिका में हम्मीर-विषयक एक विचित्र कथा है । हम्मीर बादशाह का 'राजपूत' है, किन्तु उसे पूरे हाथ से सलाम न कर एक अंगुली दिखाता है। इसलिए उसे लोग बांका हमीर कहते थे।
इस चैर का कारण बताने के लिए कवि ने सुल्तान के पूर्वजन्म की वार्ता दी है। सोमनाथ पट्टण में दो अनाथ ब्राह्मण बालकों ने जिनके नाम अलैया
और कनैया थे, बारह वर्ष तक बिना किसी वृत्ति के गौएं चराई। फिर बारह वर्ष उन्होंने तीर्थयात्रा की और भनेक तीर्थो से सोमनाथ पर चढ़ाने के लिए जल ग्रहण किया। किन्तु शिव ने पण्डा भेजकर कहलाया कि यदि वे उस पर चल चढ़ायेंगे तो मन्दिर गिर पड़ेगा और शिवलिंग मग्न होगा।
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