________________
( ८६ ) इतना ही कहना पर्याप्त है कि यह प्रायः महेश के हम्मीर-रासो का रूपान्तर है। इसी प्रकार चन्द्रशेखर वाजपेयी का हम्मीर हठ; भी प्रकाशित है' इतिहास की दृष्टि से इसका महत्त्व भी विशेष नहीं है। . . ... ग्वाल कविका हम्मीर हठ सं० १८८३ की कृति है | यह चन्द्र-- शेखर के 'हम्मीर-हठ' से बहुत कुछ मिलती-जुलती है।' ___ "माण्डउ की हम्मीरायण के अतिरिक्त एक 'वृहद् हम्मीरायण' भी जिसका सम्पादन श्री अगरचन्द नाहटा कर रहे हैं। श्री नाहटा की सूचना: के अनुसार 'हम्मीरायण की दो प्रतियों में से एक प्रति तो पूर्ण है और दूसरी प्रति में केवल २४८ पद्य हैं, जबकि पूरी प्रति में अन्तिम पद्य संख्या १३७३ है। ऐसा प्रतीत होता कि अधूरी प्रति इस पूर्ण प्रति से ही नकल की जा रही थी जो पूरी नहीं हुई।” मूल प्रति सं० १७८४ की है। भाषा हिन्दी है, और किसी अंश तक जान की भाषा से मिलती है।
कविता का आरम्म सरस्वती, गजानन, चतुर्भुज आदि को प्रणाम कर किया गया है । लक्ष्य वही है जो किसी वीरगाथा का होना चाहिए
सांवत रूप हमीर की, सांवत सुण है बात । - सूरापण हुवै चौगनो, सूरां सदा सुहात ॥ प्रति के अन्त में सेना की संख्या है। 'अन्तेवरी', निधान, रतन, मुकुटबन्ध राजा, सोना रूपा का आगर, पट्टण, धूल के गढ़, रत्न आदि की भी संख्याएँ हैं जो अतिशयोक्ति पूर्ण हैं। .. - इस ग्रंथ की समीक्षा हम यथासक्य अन्यत्र करेंगे।
६.१ देखें श्री विश्वनाथप्रसाद मिश्र-वाल कवि', धीरेन्द्र वर्मा विशेषांक
हिन्दी अनुशीलन, पृ० २३३,
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org