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________________ ( ८५ ) -समय भी उसका निजी ही नहीं, सर्वथा अशुद्ध भी है । हम्मीर के रणथंभोर के दरवाजे पर आकर 'कमल-पूजा' की कथा अब भी प्रसिद्ध है। प्राचीन पारम्परिक कथा से इसका विरोध है। नैणसी ने गढ़ के पतन की दो तिथियाँ दी हैं, सम्वत् १३५२ श्रावण बदी ५ (नैणसी की ख्यात, भाग १, पृ० १६० ) और दूसरी संवत् १३५८ ( भाग दूसरा, पृ० ४८३ )। इनमें दूसरा संवत् ठीक है। महेशकृत 'हम्मीर रासो' की दो प्रतियाँ श्री अगर चन्दजी नाहटा के संग्रह में हैं और कुछ प्रतियाँ अन्यत्र भी हैं। ‘भाषा डिंगल से प्रभावित राजस्थानी है।” इस कृति की कुछ उल्लेख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं। (१) महिमासाहि को अलाउद्दीन की किसी बेगम से अनुचित सम्बन्ध के कारण निकाला जाता है। गाभरू बादशाह की सेवा में रहता है। (२) छाणगढ़ का रणधीर हम्मीर की सहायता करता है। इसलिए रणथम्भोर को लेने से पहले बादशाह छणगढ़ लेता है । ( ३ ) नर्तकी को गामरू गिराता है । (४) सुर्जन कोठारी के मिल जाने से अलाउद्दीन को ज्ञात होता है 'कि दुर्ग में धान्य नहीं है। (५) बादशाह सेतुबन्ध जाकर भगवान् शिव का पूजन कर समुद्र में कूद कर अपने प्राणों का त्याग करता है । इस कथा में कल्पना अधिक और ऐतिहासिक तथ्य कम है। जोधराज कृत हम्मीर-रासो प्रकाशित रचना है। इसके बारे में Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003823
Book TitleHammirayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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