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________________ ३३ रत्नपरीक्षा का परिचय में होता था। ठक्कुर फेरू ने हिमालय को ही पुखराज का उद्गम स्थान माना है पर यह बात प्रसिद्ध है कि सिंहल अपने पीले पुखराज के लिए प्रसिद्ध है। कर्केतन-कर्केतन के उत्पत्ति स्थान का किसी रत्नशास्त्र में उल्लेख नहीं है। पर ठक्कुर फेरू ने पवणुप्पट्ठान देश में इसकी उत्पत्ति कही है। यहां शायद दो जगहों से मतलब है पवण और उप्पट्ठान । पवण से संभव है शायद अफगानिस्तान में गजनी के पास पर्वान से मतलब हो और उप्पट्टान से परि-अफगानिस्तान से। अगर हमारी पहचान ठीक है तो यहां पर्वान से शायद वहां कर्केतन के व्यापार से मतलब हो। उप्पट्ठान से रूस में उराल पर्वत में एकाटेरिन बर्ग और टाकोवाजा की कर्केतन की खानों से मतलब हो (जी० एफ०, हर्बर्ट स्मिथ, जेम स्टोन्स, पृ० २३६, लंडन १९२३)। यह भी संभव है कि उपपट्ठान में पट्टन शब्द छिपा हो। इब्नबतूता ने (२६३-६४ ) फट्टन को चोल मंडल का एक बडा बंदर माना है पर इस बंदर की 'ठीक पहचान नहीं हो सकती। संभव है कि इससे कावेरी पट्टीनम् अथवा नागपट्टीनम् का बोध होता हो। अगर यह पहचान ठीक है तो शायद सिंहल का कर्केतन यहां आता हो। ठक्कुर फेरू के अनुसार इसका रंग तांबे अथवा पके हुए महुए की तरह अथवा नीलाभ होता था। भीष्म-ठक्कुर फेरू ने भीष्म का उत्पत्ति स्थान हिमालय माना है। यह रंगमें सफेद तथा बिजली और आग से रक्षा करनेवाला माना गया है। गोमेद-रत्नशास्त्रों में इसका विवरण कम आया है । अगस्तिमत के क्षेपक में (४-५) गोमेद को स्वच्छ, गुरु, स्निग्ध और गोमूत्र के रंग का कहा गया है। अगस्तीय रत्नपरीक्षा (८३-८६ ) में गोमेद को गाय के मेद अथवा गोमूत्र के रंग का कहा गया है। उसका रंग धवल और पिंजर भी होता था। ठक्कुर फेरू (१००) ने इसका रंग गहरा लाल, सफेद और पीला माना है। और किसी रत्नशास्त्र में गोमेद के उत्पत्तिस्थान का पता नहीं चलता। पर ठक्कुर फेरू ने इसका स्रोत, सिरिनायकुलपरेबग देस तथा नर्मदा नदी माना है। सिरिनायकुलपरे में कौन सा नाम छिपा हुआ है यह तो ठीक नहीं कहा जा सकता पर गोलकुंडा से मसुलीपटन के रास्ते में पुंगल के आगे नगुलपाद पडता था जिसे तावनिये ने नगेलपर कहा है ( तावनिये, १, पृ० १७३ ) संभव है कि नायकुलपर यही स्थान हो। बग देस से शायद बंगाल का बोध हो सकता है, बहुत संभव है कि ११ वीं सदी में सिंहल से गोमेद वहां जाता रहा हो। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003822
Book TitleRatnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1996
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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