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ठकुर- फेरू - विरचित
पारसी रत्न
ठक्कुर फेरू ने (१०३ ) लाल, अकीक और पिरोजा को पारसी रत्न माना है । इसका यह अर्थ हुआ कि ये रत्न या तो फारस में होते थे अथवा उनका व्यापार फारस और अरब के व्यापारी करते थे ।
लाल - आग की तरह लाल - यह रत्न बंदखसाण देश यानी बदख्शां से आता था । मार्कोपोलो ( भा० १, पृ० १४९-५० ) के अनुसार बदख्शां के बलास मानिक प्रसिद्ध थे । वे सिग्नान के एक पहाड से खोद कर निकाले जाते थे और उन पर वहां के शासक का पूरा अधिकार होता था । लाल की खानें बंक्षु नदी के दाहिने किनारे पर इराकाशम जिले में शिगनान के सीमा पर स्थित हैं (वुड, ए जर्नी टु आक्शस, भूमिका पृ० ३३ )
अकीक-ठक्कुर फेरू ने इसे पीले रंग का कहा है और इसकी उत्पत्ति जमण देश यानी अरब में यमन देश माना है । यमन देश के अकीक का उल्लेख इब्नबैतर ( ११९७ - १२४८) ने किया है ( फेरां, तेक्सत् रेलातीफ अ ल एक्सप्रेम ओरियां, १, पृ० २५६ ) और इसे कई बीमारियों की औषधि मानी है आज दिन भी यमनी अकीक बंबई में प्रसिद्ध है। इसका दाम ठक्कुर फेरु के अनुसार बहुत कम होता था ।
फिरोजा -ठक्कुर फेरू के अनुसार नीलाम्ल रंग का फ़िरोजा नीसावर और मुवासीर की खानों से आता था । निसावर से यहां फारस के निशापुर से मतलब है । तावर्निये (२, पृ० १०३-०४ ) के अनुसार फिरोजा फारस में दो खानों से पाया जाता था । पुरानी खान मशद से तीन दिन के रास्ते पर निशापुर के आसपास थी और नई मशद से पांच दिन के रास्ते पर थी । मुवासीर से यहां ईराक के मोसुल या अमौसिल से बोध होता है । लगता है फारसी फिरोजा यहां व्यापार के लिये आता था । आज दिन भी मोसुल में फिरोजे का व्यापार होता है ।
लाल, लहसनिया, इन्द्रनील और फिरोजे का दाम ठक्कुर फेरू के अनुसार तौल से सोने के टांकों में होता था । निम्नलिखित यंत्र से यह बात साफ हो जाती है:
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इन्द्रनील 이 पेरोजा 이
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दूसरे महारनों के मुकाबिले में काफी कम थी ।
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उपर्युक्त यंत्र के अध्ययन से पता चल जाता है कि लाल इत्यादि की कीमत
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