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ठकुर फेरू-विरचित सुना । सानुदास को उस गहने की ओर ताकते हुए देखकर उन्होंने समझा कि शायद यह निगाहदार था। उससे पूछने पर उसने गहने की कीमत एक करोड़ बता कर कह दिया कि बेचने और खरीदनेवाले की मर्जी से सौदा पट सकता था । वे दोनों एक दूसरे जौहरी के पास पहुंचे जिसने कहा कि गहने की कीमत सारा संसार था पर नासमझ के लिए उसका मोल एक छदाम था । सानुदास की जानकारी से प्रसन्न होकर राजा ने उसे अपना रत्नपरीक्षक नियुक्त कर दिया ।
प्राचीन साहित्य में अनेक ऐसे उल्लेख आए हैं जिनसे पता चलता है कि रत्नों के व्यापार के लिए भारतीय जौहरी देश और विदेश की बराबर यात्रा करते थे। दिव्यावदान (पृ० २२९-२३०) की एक कहानी में बतलाया गया है कि रत्नों के व्यापारी मोती, वैडूर्य, शंख, मूंगा, चांदी, सोना, अकीक, जमुनिया, और दक्षिणावर्त शंख के व्यापार के लिए समुद्र यात्रा करते थे। निर्यामक प्रायः उन्हें सिंहल द्वीप में बनने वाले नकली रत्नों से होशियार कर देता था तथा उन्हें आदेश दे देता था कि वे खूब समझ कर माल खरीदें । ज्ञाताधर्म कथा (१७) और उत्तराध्ययन सूत्रकी टीका (३६।७३ ) से भी रत्नों के इस व्यापार की ओर संकेत मिलता है । उत्तराध्ययन टीका में एक ईरानी व्यापारी की कहानी दी गई है जो ईरान से इस देश में सोना, चांदी, रत्न और मूंगा छिपा कर लाना चाहता था । आवश्यक चूर्णि (पृ० ३४२ ) में रतव्यापार के लिए एक बनिए का पारसकूल जाने का उल्लेख है । महाभारत (२।२७।२५-२६) के अनुसार दक्षिण समुद्र से इस देश में रत्न और मूंगे आते थे । ईसा की प्रारंभिक सदियों में तो भारत से रोम को हीरे, सार्ड, लोहितांक, अकीक, सार्डोनिक्स, बाबागोरी, क्राइसाप्रेस, जहर मुहरा, : रक्तमणि, हेलियोटाप, ज्योतिरस, कसौटी पत्थर, लहसुनियां, एवेंचुरीन, जमुनिया, स्फटिक, बिल्लौर, कोरंड, नीलम, मानिक लाल, लालवर्द, गार्नेट, तुरमुली, मोती इत्यादि पहुंचते थे (मोतीचन्द्र, सार्थवाह, पृ० १२८-१२९)
-:२:
प्राचीन रत्नपरीक्षा का क्या रूप रहा होगा यह तो ठीक ठीक नहीं कहा जा सकता, पर उस सम्बन्ध के जो ग्रंथ मिले हैं उनका विवरण नीचे दिया जाता है। .
१. अर्थशास्त्र-कौटिल्य ने कोश-प्रवेश्य रत्नपरीक्षा (अर्थशास्त्र, २-१०-२९) में रत्नपरीक्षा के सम्बन्ध की कुछ जानकारियां दी हैं । कोश में अधिकारी व्यक्तियों के सलाह से ही रत्न खरीदे जाते थे । पहले प्रकरण में मोती के उत्पत्ति स्थान, गुण, दोष तथा आकार इत्यादि का वर्णन है । इसके बाद मणि, सौगंधिक, वैडूर्य, पुष्पराग, इन्द्रनील, नंदक, स्रवन्मध्य, सूर्यकान्त, विमलक, सस्यक, अंजनमूल, पित्तक, सुलभक, लोहितक, अमृतांशुक, ज्योतिरसंक, मैलेयक, अहिच्छत्रक, कूर्प, पूतिकूर्प, सुगन्धिकूप,
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