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________________ रत्नपरीक्षा का परिचय क्षीरपक, सुक्तिचूर्णक, सिलाप्रवालक, चूलक, शुक्रपुलक तथा हीरा और मूंगा के नाम आए हैं । इनमें से बहुत से रत्नों की ठीक ठीक पहचान भी नहीं हो सकती क्यों कि बाद के रत्नशास्त्र उनका उल्लेख तक नहीं करते । २. रत्नपरीक्षा-बुद्धभट्ट की रत्नपरीक्षा का समय निश्चित करने के पहले वराहमिहिर की बृहत् संहिता के ८० से ८३ अध्यायों की जानकारी जरूरी है । इन अध्यायों में हीरा, मोती और मानिक के वर्णन हैं । पन्ने का वर्णन तो केवल एक श्लोक में हैं । बुद्धभट्ट की रत्नपरीक्षा और बृहत्संहिता के रत्नप्रकरण की छानबीन करके श्री फिनो (वही पृ० ७ से ) इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि दोनों की रत्नों की तालिकाओं तथा हीरे और मोती का भाव लगाने की विधि इत्यादि में बड़ी समानता है। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि दोनों ग्रंथों ने समान रूप से किसी प्राचीन रत्नशास्त्र से अपना मसाला लिया। गरुड़ पुराण ने भी बुद्धभट्ट का नाम हटाकर ६८ से ७० अध्यायों में रत्नपरीक्षा ग्रहण कर लिया । बहुत संभव है कि शायद बुद्धभट्ट का समय ७-८ वीं सदी या इसके पहले भी हो सकता है। ३. अगस्तिमत-अगस्तिमत और रत्नपरीक्षा का विषय एक होते हुए भी दोनों में इतना भेद है कि दोनों एक ही अनुश्रुति की बहुत दिनोंसे अलग हुई शाखा जान पड़ते हैं। श्री फिनो (पृ० ११) के अनुसार अगस्तिमत का समय बुद्धभट्ट के बाद यानी छठी सदी के बाद माना जाना चाहिए । शायद उसका लेखक दक्षिण का रहनेवाला जान पड़ता है । संभव है कि अगस्तिमत का आधार कोई. ऐसा रत्नशास्त्र रहा हो जिसकी ख्याति दक्षिण में बहुत दिनों तक थी। ग्रंथ के अनेक उल्लेखों से ऐसा पता चलता है, कि रत्नशास्त्र के प्राचीन सिद्धान्तों को निबाहते हुए भी ग्रंथकार ने अपने अनुभवों का उल्लेख किया है । अभाग्यवश ग्रंथकार के व्याकरण और शैली में निष्णात न होने से उसके भाव समझने में बड़ी कठिनाई पड़ती है। ४. नवरत्नपरीक्षा-नवरत्नपरीक्षा के दो संस्करण मिलते हैं। छोटे संस्करण में सोम भूभूज का नाम तीन जगह मिलता है जिसके आधार पर यह माना जा सकता है कि इसके रचयिता कल्याणी का पश्चिमी. चालुक्य राजा सोमेश्वर (११२८-११३८, ई.) था । इस कथन की सचाई इस बात से भी सिद्ध होती है कि मानसोल्लास के कोशाध्यायमें (मानसोल्लास, भा० १, पृ० ६४ से ) जो रत्नों का वर्णन है, वह सिवाय कुछ छोटे मोटे पाठभेदों के नवरत्नपरीक्षा जैसा ही है । नवरत्नपरीक्षा का दूसरा संस्करण बीकानेर और तंजोरकी हस्तलिखित प्रतियों में मिलता है । इसमें धातुगद, मुद्राप्रकार और कृत्रिम रत्नप्रकार प्रकरण अधिक हैं । संभव है कि स्मृतिसारोद्धार के लेखक नारायण पंडित ने इन प्रकरणों को अपनी ओर से जोड़ दिया हो। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003822
Book TitleRatnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1996
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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