________________
गणितसार -चतुर्थाध्याय रक्खहि अट्ठ गुवाल तह, सारिच्छिय सहि तेवि ।
पंडिय ! कित्तिय गावि हुई, तम्मि नयरि सव्वे वि ॥ १८ (११) अथ गोदुगुधवंटनमाह
गो जण समभागेणं जणसंख इगाइ ठवि कमु कमसो । जा अंतिम गोअंकं समपण्हे दुडु अंकसमं ॥ १९ इति श्रीचन्द्राङ्गजठक्कुरफेरूविरचिते गणितसारे देशा___धिकाराद्याः चत्वारि(?र.) अधिकारानि(?राः)
___सम्मत्ता ॥ गाहा ६४ ॥ अथ उद्देशपंचगं सूत्रमाहपणमेविणु सिट्टिकर भणामि निष्पत्तिपंचगुद्देसं । धन्निक्खुचुप्पडाणं देसकरग्घाणमाणाणं ॥ १ सव्वत्थ अन्न निप्पइ भूमिविसेसेण अंतरं बहुयं । ढिल्लिय आसिय नरहड वरुण पएसा इमं जाण ॥ २ खित्तस्स दीह-वित्थर विग्गहया गुणिय हवइ भूसंखा । वीस कमि दीह-वित्थरि अह कंविय सट्ठि वीगहओ ॥ ३ अन्नस्स फलं जायइ निप्पन्ने वीस विसुव वीगहओ। सट्ठि मण धन्न कुद्दव चउवीस मउट्ट जाणेह ॥ ४ चउला मण बावीसं तिल सोलस मुग्ग मास अट्ठारं । वीस कंगुणिय चीणय पनरह कूरी सवाईया ॥ ५ सोलस मण कप्पासा चालीस जुवारि दस सणो तह य । इक्खु सवाणिय साहा इत्तो आसाढियं जाण ॥ ६ गोहुव पणयालीसं कलाव मस्सूर चणय बत्तीसं । जव छप्पन मणाइं सरिसम अलसीइ करड दसं ॥ ७ वटुला तोरि कुलत्था चउदस मण होति सव्व कण तुलिया । जीरा धणिया दस मण पर सिकय मज्झि गणियंति ॥ ८
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org