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________________ ठक्कुर -फेरू-विरचित (५) अथ करभगत्यामाह आइ-मझंतरासी अंताओ आइ हीण मज्झेण । भाए लडं बिउणं एगजुयं करह दिणमाणं ॥ ९ चउ जोयणाइ तिय तिय वडतो निच्च चल्लए करहो । सोलस जोयण करही कित्तिय दिवसेहि सा मिलइ ॥ १० (६) अथ विपरीतोद्देशकमाह सेसूण जुत्त वग्गं गय अहियं तस्स मूलभाय गुणं । गुणयारेण विहत्तं सो अमुणिय रासि नायव्वो ॥ ११ पंचगुण नवविहत्तं तवग्गं नवहियस्स मूलं च । दो हीण तिन्नि सेसं विविरिय उद्देसगो रासी ॥ १२ (७) अथ पत्रचिन्ताज्ञानमाह सत्तरि गुण तिउनेहिं पंचहि इगवीस पनर सत्तेहिं । पिंडेण सउ पणुत्तरु देवि हरिवि मुणह परचित्तं ॥ १३ चिंतिय सुयकरसहियं बिउणिगि जुय पंचगुण सुयासहियं । दह गुण ख पणक रूवं सेस कमे मुणह सुन्न विणा ॥ १४ (८) अथ मर्दितांकज्ञानमाह सयलंकपिंडु सोहिवि रासिस्संताउ सेसपिंडाओ। जं हीणु नवसु पाडइ पूरइ मलियंकु सुन्नु नवं ॥ १५ (९) अथ सदृशांकानयनमाह एगाई य नवंता अट्ट विणा इच्छियंकु नवि गुणिओ। पुव्वंकरासि गुणिया हवंति एगाइ सरिसंका ॥ १६ (१०) अथ गोसंख्यानयनमाह उवराओ जा हिट्टि हुई, ताणुक्कमिहि ठविज । उवरुप्परि सव्वेवि गुणि, गावि एम जाणिज्ज ॥ १७ चहुं दुवारिहिं गावि नीसरिय, गय पाणी पंच सरि सत्त रुक्ख तलि ते बइट्ठिय । आवंति वारिहि नविहि पइसि छच्च वाडिहि निविट्ठिय । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003822
Book TitleRatnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1996
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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