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ठकुर-फेरू-विरचित सव्वे वि वेसवारा हालिम मेत्थी य सग्गवत्ती य । . कोर धन्नाइ सेंक्य सउ दम्म करस्स विग्गहए ॥ ९
॥ इति धान्योत्पत्तिफलम् ॥ नव खारि पचास मणी इक्खुरसो तस्स पंचमंसु गुलो । सकर छटुंसे हुइ सोलसमंसे य खंडा य ॥ १० तस्स दिवड्डा रव्वा हीणाहिय पुण हवेइ नीरवसा । पुणु इत्तियं नवि चलइ जा भणियं दिट्ठ पत्तेणं ॥ ११ खंडाउ तिभागूणा निवात वरिसोलगा भवे पउणा । अइचुक्ख सेस सीरो इग वारा होइ खंडसमा ॥ १२
॥ इति इक्षुरसफलम् ॥ तिल-सरिसम करड मणे तिल्लं नव सत्त पंच विसुव कमे । दुद्धि अडंसु नवंसो लूणिउ तत्तो य पउण घिओ ॥ १३
॥ इति स्नेहफलम् ॥ दसि छालीएहि गावी महिसी तबिउण चहु वयल्लि हलो।
चुल्हि पवाणे कुढिया नाविय वलहार महर विणा ॥ १४ "देवइ कन्नचला तह नीली कविलीय गो अदंतीय । विप्प सवासणि य पुणो करं चरं नत्थि एयाणं ॥ १५ टंका वत्तीस हलो तिविह कुढी एग दीवढ दु टकीय । महिसिक्कु गावि अडो वुड्डिय वसहस्स टंको य ॥ १६ इय भणियं उद्देसं हीणाहिय होति चट्टियणुसारे । अड तिहा पा अन्नं तिण चर पा हीण भा सकरं ॥ १७
॥ इति देशकरफलम् ॥ जे पाई दम्मक्किहि भवंति ते तिउण निच्छए सेई । अन्नेवि विउण पाई टंकइ इक्केवि जाणिज्जा ॥ १८ जि किवि सेर भणियहि दम्मिकिहि, ते वि सवाया मण टंकिक्किहि । मणह भाउ पंचमु पाडिज्जहु, सेस सेर दम्मिक्कि मुणिज्जहु ॥ १९
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