________________
४७
गणितसार-प्रथमाध्याय १७. अथ त्रैरासिकमाह
आइ अंतेकजाई ठविजए अन्नजाइमज्झेण । अंतेण मज्झि गुणियं आइमभागं तिरासियगं ॥ ६३ जा इक्कारस दंमिहि दोसिय कर सत्त कप्पडो होइ । ता चउवीसिहि दम्मिहि कइ हत्थ हवंति ते कहसु ॥ ६४ भणिसु हव नाणवढें नव मुंद लहति दम्म पणवीसं । इय अग्धपमाणेणं सोलस मुंदाण कइ मुल्लं ॥ ६५ चंदण पलं सवायं सतिहा नव दम्म मुल्लु पावेइ । ता छ पल खडंसूणा कित्तिय दम्माइं पावंति ॥ ६६ दम्मि सवा सत्तेहिं पिप्पलि दुइ सेर छट्ठमंसऽहिया । लब्भइ ता नव दम्मिहि तिहाय ऊणेहिं किं हवइ ॥ ६७ पाउणवीसा सएहिं दम्मिहि सतिहाय पंच पत्था य । ता तंदुलाइ अन्नं कइ लब्भइ इक्कि दम्मेण ॥ ६८ बारहवन्नी कणओ सतिहा सय दम्मि तोलओ इक्को । जइ हुइ त इक्कि मासय दसंसहीणस्स कइ मुल्लो ॥ ६९ जइ जोयणछटुंसं पंगुलओ चलइ सत्त दिवसेहिं । ता सट्ठि जोयणाई कित्तिय कालेण गच्छेइ ॥ ७० अंगुलसत्तंसो जइ दिणस्स छटुंसि कीडओ चलइ । गच्छिहइ अट्ठजोयण नियत्तई केण कालेण ॥ ७१ अथ पंचरासिकमाह-; सप्तनवैकादसरासिको य (?) हिट्ठिम फलंक विवरिय पिहु पिहु कमि दो वि पक्ख गुणिऊणं
थोवंक-रासिभायं पण सत्त नवाइ रासीणं ॥ ७२ १८. अथ पंचराशिकमाहमासेण पंचगसए वरिसे सट्ठिस्स किं फलं हवइ । अह नो नज्जइ कालं फल मूलं तह पमाणंत्रणं ॥ ७३
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org