SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 143
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ठक्कुर-फेरू-विरचित ११. अथ भिन्नगुणाकारमाह अंसेण अंसगुणियं छेएण वि छेय गुणिवि हरियव्वं । जं हवइ लडमकं तं जाणह भिन्नगुणयारं ॥ ५३ पाऊण पंच दम्मा गुणिज्ज सतिहाय अट्ठ दम्मेहिं । अहं खडंसि गुणियं पिहु पिहु किं हवइ तस्स फलं ॥ ५४ १२. अथ भिन्नभागाहरमाह करिऊण छेय अंसा हरस्स विवरीय न हारणीयस्स । पुव्वविहि गुणि विभायं एस विही भिन्नभायस्स ॥ ५५ अड्डाइएहि भायं हरिजए पउणसत्तदम्मेहिं । चहु. सतिहाइ विहत्तं सवा छ कि ताण लड फलं.॥ ५६ १३. अथ भिन्नवर्गमाह अंसाण वग्गरासी हिट्ठिम छेयाण वग्गभाएण । पाडेवि जं जि लद्धं तं जाण [हु] भिन्नवग्गफलं ॥ ५७ अड्डाइयस्स वग्गं सतिहा पंचस्स पउणसत्तस्स । भणि अड तिहाय पुणो जइ वग्गविही वियाणासि ॥ ५८ १४. अथ भिन्नवर्गमूलमाह अंसस्स वग्गमूले छेयणमूलेण भाउ पाडिज्जा । विसम-सम-विसमकरणे हुइ मूलं भिन्नवग्गस्स ॥ ५९ १५. अथ भिन्नघनमाह अंसस्स घणं कुज्जा छेयस्स घणाण भाउ हरिऊणं । ज किंपि तत्थ लद्धं भिन्नघणं तं वियाणाहि ॥ ६० सड्डय-सत्तस्स घणं सवाय पनरस पा तिहायस्स । जं जायइ घणरासी पत्तेयं तं भणिज्जासु ॥ ६१ १६. अथ भिन्नघणमूलमाह अंसघणमूलरासे छेयणघण मूलभाउ पाडिज्जा । घणपय दोअ घणपए इय करणे हवइ घणमूलं ॥ ६२ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003822
Book TitleRatnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1996
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy