SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२ ठक्करफेरूविरचित ज्योतिषसार मुत्ते गारसठाणे संठिय पिक्खति पुन्नदिट्टि गां । लग्गं गहाण दिट्ठी गणिज्ज वामं विणा राहू ॥ २७ अत्र पुनः केचिदेवमाहु: दो वारधा य छहट्ट पाओ, दिट्ठी य अद्धं तिय गारसाओ । पंची नवं ठाण गहाण पडणं, चउकिंद दिट्ठी पर (रि) पुन्न नूणं ॥ २८ अथवा तिय दसमगो य मंदो तिकोणगो ५ । ९ जीओ अट्ठ-चउ भूमो। सुक्क रवी बुह - चंदा पुन्नं पिक्खंति जायाओ ॥ २९ ॥ इति ग्रहाणां दृष्टिः ॥ जातिय ता न विकप्पं तियहिय किंदं खडाउ हीलिज्जा । खड्डु खडहियाउ हीणा नवहिय चैक्काउ सोहि भुजं ॥ ३० ॥ इति भुजम् ॥ चरखंड पिंडविउणं ख - छै लद्धं तीसैं जुत्त परमदिणं । कक्कयणं सूणदिणे निसिद्ध दिणमाणु मिस्सु भवे ॥ ३१ ॥ इति परमदिन - मिश्री ॥ अयणंसजुत्तसूरं भुजकंमं करिवि सेस जं रासी । तं चरखंडियभुत्तं भुज्जेहि गुणिज्ज अंस कला ॥ ३२ हरिऊण तीसि भायं लपलं जुत्त भुत्त खंडिचरं । तं पनरहिजुय हीणं अज तुल कमि बिउण दिणरयणिं ॥ ३३ ॥ इति दिन - रात्रिमानम् ॥ परमदिणाओ हीणं इच्छिपय दिणमाणु सेस सत्तिहयं । पंचे फल बारसंगुले संकस्स दिन छाय धुवं ॥ ३४ ॥ इति मध्याह्नच्छाया ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003822
Book TitleRatnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1996
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy