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________________ तृतीय गणितपद द्वार फुडलग्गस्संसाई कलपिंडं व छ दुसेय दिवढसएँ। सट्टि फलं चउठाणं इय खडुवग्गस्स खडुवग्गं ॥ १९ ॥ इति सप्तषड्वर्गशुद्धिः ॥ अथ चायमुपाय:इगवीस पुव्व सतरह अड अठरह अट्ठ जिण रवी सतरं । चउदह छवीस अट्ठय मेसाई सुकमि गुणयारा ॥ २० गुणाकार २१ | १४ | १७/८ १८/८ २४ १२ | १७ | १४ | जो लग्गो ठाविजइ तीसंसो तस्स गुणह गुणयारे । जं हुइ तं पल उवरि हवइ छ पण वग्गसुद्धी य ॥ २१ । अह जं लग्गं सुहगह नवंसगेगूण तं गुणेयव्वं । नंद फल उवरि सुद्धं विणावि खडुवग्ग भणहि इगे ॥ २२ ॥ इति षवर्गस्योपायः॥ इय छ पण वग्गसुद्धी सोमगहाणं च सयलकज्जकरा । कूरग्गहाण असुहा सुहया उदयत्थसुद्धि पुणो ॥ २३ । दत्तनवंसगसामी जा पिक्खइ लग्ग उदयसुद्धि इमं । दिक्खा - पयट्ठमाई सुहावहा सव्वकज्जेसु ॥ २४ . ॥इति उदयशुद्धिः॥ जोइ नवंसगु लग्गे तस्स कलत्तस्स सामि जइ पिच्छे । लग्गस्स य जा मित्तं हविज्ज ता अड( त्थ ? )सुद्धी य ॥ २५ अस्तशुद्धिः स्त्रीणां शुभकरी। दसम - तिए नव - पणगे चउ - अट्ठ गहा कॅलत्तठाणाओ। पिक्खंति पायवुड्डी लग्गं दिट्ठीणुसारि फलं ॥ २६ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003822
Book TitleRatnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1996
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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