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________________ ठक्कुरफेरूविरचित ज्योतिषसार रवि मह ति विसाहाई चंदि विसाहा ति-पुव्वसाढाई। कुजि अद्द धणिट्ठतियं बुह मूल ति रेवयाईया ॥ १७ गुरि कित्तिय रोहिणि तिय भिगु रोहिणि पुस्स तिय सणे हत्थं । उत्तरफग्गु तियं तह जमघंटुप्पाय-मिच्चुकमो ॥ १८ ॥ इति जमघंटः । उत्पातादित्रययोगः ॥ विक्खंभ मूल गंडे अइगंडे वजु तह य वाघाए । वइधिइ सूराइ कमे अइदुट्ठा मूलजोगा ए ॥१९ ॥ इति शूलयोगः ॥ रवि सत्त पण ति चउ वसं चंदे रर्स वेय नयेण मुणि रामौ । पण तिय इग दु छ भूमे चउँ कैर मुणि पंचें एग बुहे ॥ २० राम इग छ वर्स चउ गुरि भिगु ? मुँणि सेरऽग्गैि मुँणि सणि रसौ। चउ छ दु कुलि-उवकुलिया कंटय पहररुद्ध कालकमे ॥ २१ ॥ इति कुलिक-उपकुलिकादित्रयम् ॥ इग दुन्नि छ च रविणो चंदे पढमऽट्ठ पंचमी सुहया । चउ-सत्तऽट्ठा भूमे तिन्नि खडट्ठा बुहम्मि सुहा ॥ २२ दो पंच सत्त जीवे सुक्के चउ पढ़म छ च अट्ठ वरा । सणि सत्तऽट्ठम पंचम पहरद्धपमाण सुहवेला ॥ २३ ॥ शुभवेला इदम्॥ दुपहर घडिए ऊणे दुपहर घडि एगि अहिय मज्झण्हे । विजयं नाम मुहुत्तं पसाहगं सयलकज्ज सया ॥ २४ ॥विजयायमुहूर्तम् ॥ जइ पुण तुरियं कज्जं हविज्ज लग्गं न लब्भए सुद्धं । ता छायाधुवलग्गं गहियव्वं सयलकज्जेसु ॥ २५ 5 दृश्यतां पञ्चमं कोष्ठकम् । G दृश्यतां षष्ठं कोष्ठकम् । 7 दृश्यतां सप्तमं कोष्ठकम् । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003822
Book TitleRatnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1996
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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