________________
प्रथम दिनशुद्धिद्वार रवि वीस चंदि सोलह कुजि पनरह सड्ढ बुद्धि चउदसगं। गुरि तेर सुक्कि सणिणो वारह वारंगुले संको ॥ २६
अथवा सणि सुक्कि सोमवारे सट्टट्ठ पया बुहिऽट नव भूमे । गुरि सत्त रविक्कारस नियतणु छाया उ सुहकजे ॥ २७
॥छायालग्नम् ॥ मह य धणिट्ठा उदए उट्टो कित्तियऽणुराह धू तिरिओ। उड्डे धयाइ कीरइ तिरिए दिक्खा-पयट्ठाई ॥ २८
॥ध्रुवलग्नम् ॥ मुणि घडिय सूलगंडे विक्खंभे पंच तिन्नि वाघाए । वज अइगंड नव नव परिह वलं वजि सेस सुहा ॥ २९
॥ योगः॥ जाणेह काल होरा पढमा वाराहिवस्स तत्तो य । छट्टे छठे ठाणे घडिया अड्डाइया जाव ॥ ३०
॥कालहोरा ॥ धण-मीणे विस-कुंभे अज-कक्के मिहुण-कन्न अलि-सीहे । मिय-तुल रवि दड्डकमे दु चउ छ अड दसमि बारसिया ॥ ३१
॥ इति सूर्यदग्धतिथयः ॥ कुंभ-धणे अज-मिहुणे तुल-सीहे मयर-मीण विस-कक्के । विच्छिय-कन्ने सुकमे पुव्वुत्ततिही य ससिदड्डा ॥ ३२
॥ इति चंद्रदग्धतिथयः" । मेसाइ कमि चउक्के पडिवाई पंचमिस्स पा पायं । एवं तप्परए पुण जा पुंनिम कूरदड्डतिही ॥ ३३
॥ इति क्रूरदग्धास्तिथयः" । 8 दृश्यतां अष्टमं कोष्ठकम् । 9 दृश्यतां नवमं कोष्ठकम् । 10 दृश्यतां दशमं कोष्टकम् । 11 दृश्यतां एकादशं कोष्ठकम् । 12 दृश्यतां द्वादशं कोष्टकम् ।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org