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कवि जयानंद कृत सुशर्मपुरीयनृपति वर्णन छन्द ( नगरकोट- कांगड़ा का इतिहास )
श्री भँवरलाल नाहटा
जालंधर मण्डल कांगड़ा नगरकोट- त्रिगर्त्त का राज्य वंश अति प्राचीन है । महाभारतकालीन राजा सुशर्मचन्द्र से इस वंश की परम्परा चली आ रही है और वह इसके ५०० नामों में २३४ वें नंबर में है । ब्रह्माण्ड पुराण के अनुसार देवी पार्वती ने ब्रह्मा से वर प्राप्त दैत्यों का नाश करने के लिए चैत्र शुक्ल ८ को अपने पसीने की बूंद से शक्तिशाली मानव को रचना की जो भूमिचन्द्र हुआ । देवगायक पद्मकेतु ने अपनी पुत्री वसुमती को उनसे व्याहा । भूमिचन्द्र ने दैत्यों का वध किया और इसके पुरस्कार में देवी द्वारा त्रिगर्त का राज्य उन्हें सम्प्राप्त हुआ । श्री हेमचन्द्राचार्य के अनुसार त्रिगर्त जलंधर का ही पर्याय है । महाभारत और कल्हण कवि की राजतरंगिणी में भी इसका त्रिगत नाम से ही उल्लेख आया है । यों कठौच वंश का मूलस्थान - मुलतान था पर वीर अर्जुन से पराजित होकर सुशमंचन्द्र ने कांगड़ा-नगरकोट या सुशर्मपुर को बसाया था ।
सुकवि जयानन्द कृत “सुशर्मपुर नृपति छंद" अपभ्रंश काव्य में आदि पुरुष भूमिचन्द्र के बीच २ - सोनचन्द्र ३ - असमर्क ४- अजगर्तचद्र – ये तीन नाम ही आये हैं एवं इसी गुटकाकार प्रति में छंद के शेष होने पर जो सूची दी है, ये ही नाम हैं अर्थात् सुशर्मचन्द्र ५ वें नंबर में हैं । इसी सुशमंचन्द्र ने काँगड़ा में भगवान आदिनाथ और अम्बिका देवी की स्थापना की, ऐसा जयसागरो - पाध्याय कृत विज्ञप्ति - त्रिवेणी और स्तवनादि में उल्लेख पाया जाता है । में में इन्होंने कौरवों के पक्ष महाभारत करते युद्ध युद्ध स्वर्ग प्राप्त हुए किया । प्रस्तुत नृपति वर्णन छंद के २० वें पद्य में इनके साथ २१८७० रथ, इतने ही हाथी, ६५६०० अश्वारोही, १०९३६० पदाति का आक्षौहिणी सैन्य
दल था ।
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