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________________ कवि हर्षकीर्ति कृत नगरकोट जालपा परमेश्वरी स्तवन नगरकोटइ नितु भेटियइजी, जागती जालपामाई। दरसण देखतां दुख टलइजी, सेवतां सब सुख थाइ ॥१॥ नगर० ।। जगत्र जननी जग सिरोजी, जगत्र उपावण हार। जगति मांहि सकति जसु जगमगइजी, कोई न लोपइ कार ॥२॥ नगर० ॥ दुष्ट दानव देवी तइं हण्याजी, सारीया देव ना काज । तुज समउ अवर न को नहीं जो, जुगि जुगि थारउ राज ॥३।। नगर० ॥ भक्ति मनोरथ सहु फलइजी, महामाई थारइ आधारि । सब विचि समरथ तू सही जी, सेवकां आप साधारि ॥४॥ नगर० ।। कांगुड़ोकोट सोहावणोजी, अति भलउ भगवती थान । धन धन ते नर जे करइजी, जालपा देवि गुण गान ।।५।। नगर० ।। आजि पूगी म्हारी मनरलीजी, आजि म्हारउ नव नवारंग । आज मई देवी दुर्गा तण उजी, भलइ दीठउ भवण उतंग ।।६।। नगर० ॥ सोवन मइ छत्र कलहलइजी, रुणझुणइ पाट अपार । ऊँची ध्वजा अति लहलहइजी, जोवतां जय जयकार ॥७॥ नगर० ॥ सकल मूरति माइ परसताजी, पातिक सवि टल्या दूर। नयण अमीरस पूरणाजी, आणंद भयो भरपूर ।।।। नगर०॥ निरखतां हरख हुयो घणोजी, मेहनइ जगि निम मोर । बलि जिम अविहड़ सुख लहइजी, चंद्र नइ देखि चकोर ।।९॥ नगर० ।। [ ७७ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003821
Book TitleNagarkot Kangada Mahatirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherBansilal Kochar Shatvarshiki Abhinandan Samiti
Publication Year
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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