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________________ तुहु दरिसणु अजु दीठउ देव, मनि रलियायतु हूयउ हेव । करि पसाउ तुह बहुली सिद्धि, तइ तूठइ हुयइ गरुई रिद्धि ॥१०॥ आवइ घरिया ऊमकारु, अभिनवु नाटक रचइ संसारि । खेला नच्चहि तुम्ह दुयारि, वासुपुज सामी अवधारि ॥११॥ नेउर रुण रुण झणकारु, वीरतिलकु गुणवंतु अपारु । गेवरु नच्चइ मज्झिम रयणि, वासुपुज परमेसर भुवणि ॥१२॥ निसणहु वीरतिलकु तणउ चरिउ, सुख संपइ हुयइ नासइ दुरिउ ॥आंचली। हिन्दी भावार्थ१. वासुपूज्य स्वामी तीर्थकर देव हैं जिनकी कला का पार नहीं पाया जा सकता। उनके विज्जलपुर ( बीजापुर ) विधिचैत्य में क्षेत्रपाल के रूप में वीरतिलक का निवास है। २. हे वीरतिलक वीरों का राजा ! हमारे पर तुम कृपा-प्रसाद करो न ! देदा कवि कहता है कि प्रार्थना स्वीकार करो ! चौपाई पढो और पापों को दूर करो! ३. नगरकोट में वीरा नामक सुनार रहता था जो श्री जिनेश्वरसूरि के चरणों का अत्यन्त भक्त था। वह अनशन लेकर स्वर्ग गया, दुस्तर संसार से तिर गया। ४. वह स्वर्ग से तत्काल गुरु महाराज के पास आया और कहा-स्वामी ! हमें निवास करने के लिए स्थान बतलाओ! गुरु महाराज ने गुण जानकर आदेश दिया कि तुम विज्जलपुर में निवास करो। ५. जहाँ वासुपूज्य तीर्थंकर देव का जिनालय है, चमत्कारी वह वहाँ अवतरित होकर रहा। उसका नाम बीरतिलक रखा गया, सारा गाँव उसकी भक्ति करता है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003821
Book TitleNagarkot Kangada Mahatirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherBansilal Kochar Shatvarshiki Abhinandan Samiti
Publication Year
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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