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५. इस अपार संसार से निकालने में जो समर्थ हैं, पाप रूपी धूल के भार
को हरण करने में पवित्र जल है, जो कृपालु हैं, करुणावान् हैं, जो महानाविक हैं, जिनका प्रभाव विस्तृत है उसी ईश्वर को मैं प्रणाम करता हूँ ।
६.
जो मनुष्य आपके चरण-कमलों में नतमस्तक हैं, तथा जो आपके वचनों का अनुसरण करते हैं वे सन्त संसार रूपी समुद्र से पार हो जाते हैं |
७. जो जगत् के स्वामी हैं, जिनके नय सत्य हैं, जो स्वयम्भू हैं, स्याद्वाद के जन्म दाता हैं, जिन्होंने अन्तराय नष्ट कर दिया है, जो पण्डितों के लिये भी दुर्गम्य हैं, ऐसे प्रभु की जय हो ।
८. आपकी वाणी कमलों से भी अतिशय सुन्दर है अतएव वह देवताओं द्वारा भी गायी जाती है । विद्वान् लोग भक्तिवश आपके नय की शरण लेकर जिनत्व को प्राप्त कर लेते हैं ।
९. जिसने स्वस्वरूप को प्राप्त कर लिया है, जो अष्ट सुखों के संग रमण करता है, देशना देने के कारण जो कल्याण का घर है, उस तीर्थंकर को मैं प्रणाम करता हूँ ।
१०.
जिसने युग की आदि में जगत् का कल्याण किया, जिसने अभिमानी देवताओं की कीर्ति का भी हरण कर लिया, जो हरि-हरादि देवताओं से भी उत्तम हैं, लोक के लिये कल्याणकारी हैं, उस आदि देव को मैं वन्दन करता हूँ ।
११. प्रभो ! मुझ सेवक को आप अपनी आत्मा के संग ले चलिए ताकि मैं स्वच्छ बन सकूं । हे महाराज ! इस अभागे को अविकल चारित्र प्रदान करके कृतकृत्य कीजिये !
१२. जैसे सुशील स्त्री को घर की लक्ष्मी कहा गया है उसी तरह मैं मुक्ति प्राप्ति के लिये इस संसार में तुम्हारी आज्ञा का पालन करूँ यही सर्वोत्तम सुन्दरता है ।
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