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________________ इस संघ यात्रा के समय नगरकोट का राजा संसारचंद था जिसने संघपति वीकमसिंह को सम्मानित किया था अतः संसारचंद का राज्यकाल यही निश्चित होता है । विज्ञप्ति त्रिवेणी ( पृ० ९३ ) में श्री जिनविजयजी ने लिखा है कि कनिंगहाम साहब ने सन् १९०५-०६ की रिपोर्ट में लिखा है कि उन्होंने अम्बिका देवी के मन्दिर के दक्षिण की दिशा में स्थित मन्दिर की जिन प्रतिमा की गादी का लेख पढ़ा था कि - यह मूर्ति प्रथम संसारचंद्र के राज्य में सं० १५२३ में बनाई गई थी । x x इसके नीचे दिया हुआ कुछ अस्पष्ट लेख है । इस रास से संसारचंद राजा का समय सं० १४४८ से पूर्व का निश्चित हो जाता है तब कनिंगहाम साहब के सं० १५२३ लेख में संसारचंद का समय मानना गलत हो जाता है । संभव है आगे उसके वंशजों के नाम हों जो घिस गये होंगे । ४. संघ - यात्रा के निकलने से पूर्व संघपति वीकमसिंह का भाई वीरधवल अपने भाइयों से सलाह लेने सरसा जाता है, उस समय सरसा का स्वामी माणिकदेव मलिक था जिसने सम्मानित कर संघ निकालने की अनुमति दी थी । इस शासक के विषय में विशेष अन्वेषणीय है । ५. इस संघ यात्रा में सरसा, वोठणहंडइ ( भटिण्डा ), तलवंडी, लोद्र हाणय ( लुधियाना ), लाहड़कोट, नंदवणि ( नंदीन ), कोठी नगर, नगरकोट, आदि नगरों के नाम है । यह संघ भटनेर से कांगड़ा तीर्थ यात्रार्थ गया था । रास्ते में सतलुद्र ( सतलज ), वाण गंगा, पाताल गंगा आदि नदियां आई थी। इस संघ में ७ संघपति, ४ मंडलीक ( मांडलियउ ) और ४ पृष्ठरक्षक (पच्छिवाणु ) स्थापित किए गए थे। जिनके गोत्र नाहर, लोढा, सूराणा, भीमावत ( खरतरगच्छीय) एवं खंडेलवाल भी थे । पंजाब में खंडेलवाल जाति वाले प्रारंभ से ही श्वेताम्बर जैन धर्मानुयायी थे और आज भी हैं जिनके ओसवालों के साथ वैवाहिक संबंध होते हैं । [ ६५ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003821
Book TitleNagarkot Kangada Mahatirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherBansilal Kochar Shatvarshiki Abhinandan Samiti
Publication Year
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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