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________________ टिप्पणी १. इस रास के प्रारंभ में ऋषभदेव, अम्बिका और सरस्वती को नमस्कार करने के साथ वांधुल देवी को भी याद किया है तथा अंत में भी उसका नाम है अतः यह वड़गच्छ या नाहरवंश की कुलदेवी मालूम देती है । २. रासकार मुनिभद्र अपने गुरु मुनिशेखरसूरि को नमस्कार करता है और अन्त में भी अपने को उनका शिष्य बतलाया है । * मुनिशेखरसूरि-ये मुनिरत्नसूरि के पट्टवर ये। ये प्रभावक आचार्य होने के कारण वड़गच्छ में इनके नाम से कायोत्सर्ग किया जाता था । भटनेर में व्याख्यान देते हुए शत्रुंजय पर लगी हुई अग्नि को हाथ से बुझा दिया था यतः यैः पूज्येर्भट्टीद्र गस्थै व्र्व्याख्यानावसरे मुदा । श्री शत्रुञ्जय गिरेरग्नि हस्ताभ्यामुपशामिता ॥ सं० १३८७ और सं० १३९३ के इनके अभिलेख पाए जाते हैं । इनके शिष्य श्रीतिलकसूरि हुए जिनके पट्टधर भद्रेश्वरसूरि के समय यह संघ निकला था । * श्री भद्रेश्वरसूरि-ये दूगड़ गोत्रीय थे और आचार्य पद स्थापना से पूर्व भी ये भट्टारक की भांति प्रभावशाली थे । इनके प्रतिष्ठा किए हुए लेख उपलब्ध हैं जिनमें से एक नाहर वंश का निम्नोक्त हैसंवत् १४३६ वैशाख सुदि १३ सोमे श्री नाहर गोत्रं सा० श्री राजा पुत्रेण सा० भीमसिंहेन स० --- पार्श्व बिं० का ० प्र० वृहद्वच्छे श्री मुनिशेखरसूरि पट्टे श्रीतिलकसूरि शिष्यः श्री भद्रेश्वरसूरिभिः । ३. उस समय भटनेर में दुलचीराय राज्य करता था यह वही दुलाचंदराव है जिससे सन् १३९१ (सं० १४४८) में तिमूर ने भटनेर ले लिया था । अतः इस संघ निकलने का समय वि० सं० १४४८ से पूर्व निश्चित है । इसके बाद भटनेर पुनः दुलचीराव के वंशजों को प्राप्त हो गया और सं० १४८७ में जब संघपति खीमचंद का संघ भटनेर से शत्रुंजय गिरनारादि तीर्थों को गया तब भी राय हमीर का राज्य था । ६४ ] Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003821
Book TitleNagarkot Kangada Mahatirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherBansilal Kochar Shatvarshiki Abhinandan Samiti
Publication Year
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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