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________________ दोनों रासों के अनुसार संघपति का वंश-वृक्ष इस प्रकार है नाहर नागदेव १ खेमंधर (खिमधर) २ गोरिक ३ फम्मण ४ कुलधर ५ कमल (कमलागर) १ सूगउ २ ठकुरु ३ गुल्लउ ४ गुज्जउ डालण १ श्रीचंद २ उद्धरु (तोड़ाही) १ विक्कउ २ भुल्लणु ३ केल्हण ४ गुन्नउ ५ वीरधवल १ मोहिल २ धन्नागर किरमिणि) । | (वीधउ ?) (जगसीही) (साधारण पुत्री) सज्जन वइरा नयणागर (गूजरी) सीह वयरा हल्हा रयणसीह • इस रास में संघपति वोकसिंह के वीकम, वीकमु, वीकमसी, विक्कउ और वीकागरु नामक तत्कालीन अपभ्रंश पर्याय हैं जिसका संस्कृत रूप विक्रमसिंह है। खिमधर और खेमंधर एक ही व्यक्ति है। राजा दुलाचंद इसमें दुलचीराय है। वस्तुतः इसका संस्कृत पर्याय दुर्लभचंद होगा। * इस रास में प्रारंभ में ७ छंद, फिर एक एक घात और एक एक भास है कुल ४ घात और भास की गाथाएं १०, १३, १३, ९ हैं। कुल पद्यों की संख्या ५६ हो जाती है। * संघपति तिलक लुरे हाणय में कुलगुरु श्री भद्रेश्वरसूरि ने किया और सरसा का संघ लाहड़ कोट में आकर सम्मिलित हुआ था। सं० १४७९ में इसी नाहर वंश के संघपति नयणागर ने भटनेर से मथुरा तीर्थ का संघ निकाला था तब बड़गच्छ के आचार्य मुनीश्वरसूरि ने संघपति तिलक किया और उस समय राय हमीर भटनेर का राजा था। उस रास को श्रीमुनीश्वरसूरि के शिष्य रत्नप्रभसूरि ने बनाया है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003821
Book TitleNagarkot Kangada Mahatirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherBansilal Kochar Shatvarshiki Abhinandan Samiti
Publication Year
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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