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२. उद्धर के पुत्र ( संघपति वीकम ) के गुणों के गीत गाती हुई स्त्रियाँ
पैदल ही चल रही थी उनकी साद कोकिल की भांति सुहावनी और
मयूर की चाल वाली उस मार्ग की पथिक हो गई। ३. पहाड़ी झरणों को पानी झरते देख स्त्रियाँ कहती हैं-प्रियतम यही
रुको न ! सुगंधित हवा चल रही है और गहन वन की छाया बहुत ही
भली ( लगती ) है। ४. लाहड़कोट पहुँचने पर वहाँ सरसा का संघ मिला। वोकम संघपति
देता है और याचक जन कंचन-सोना पाते हैं ५. मुनिराज लोगों को अपने हाथ से वस्त्र दुशाले आदि वहराने का लाभ
(प्रतिलाभ ) लिया। भाट लोगों को, चरणों को शिरोपाव देकर
सन्तुष्ट किया। ६. संघ के नंदवणि-नंदौन पहुंचने पर विक्कम संघपति हर्षित हुआ।
त्रिभुवन नाथ जिनेश्वर वीर प्रभु का वन्दन-पूजन किया गया। ७. चामर, ध्वज, श्रृङ्गार और स्वर्ण कलश वहाँ स्थापित किये। संघ
वहाँ से प्रसन्नता पूर्वक चला, लोगों ने विपाशा (व्यासा) नदी को तिर के पार की। ८. क्रमशः कोटों में तिलक सहरा नगरकोट में जा पहुंचा। गुणों के
निलय संघपति वीकम ने उत्साह पूर्वक प्रवेशोत्सव किया। ९. पहले चौबीसवें जिनेश्वर वीर प्रभु को वन्दन किया फिर न्हवण
विलेपन पूजा करके प्रसन्नता पूर्वक जिनेश्वर के गुणों ( के स्तवन ) को
गाने लगे। १०. पीथड़शाह के विहार ( मन्दिर ) में आदिनाथ जिनेश्वर की पूजा कर
चित्त को प्रसन्न किया। ११. कांगड़ा में संघपति वीकम ने आदि जिनेन्द्र की पूजा की, अम्बिका के
प्रसाद से दुरित रूप समुद्र को अपनी भुजाओं से पार किया। १२. भूपति राजा संसारचन्द्र के पास जाकर हर्षपूर्वक भेंट की। उसने
भोग पुरन्दर संधपति को बहुमान दिया।
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