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________________ ७. सरसा नामक श्रेष्ठ नगर में संघ एकत्र कर, पाप रूपी जल से पार होकर भव्य जन-संघ पृथ्वीतल पर आडंबर सहित चला, नगारा निशान के शब्दों से आसमान गूंजने लगा। ८. घोड़ों के खुर की टाप से पर्वत गूंजता था, चोर-डाकूओं के मार्ग में सब सुसज्जित हुए। भ्रमण-शील मार्गदर्शकों को दिये जाते दान को देखकर लोग चित्त में चमत्कृत होते थे। ९. गवये लोग मधुर ध्वनि से गाते हैं, भट्ट लोग अत्यंत हर्षपूर्वक (विरुदावली) पढते हैं, गुण और पराक्रम में गुरुतर संघपति विक्रम इस प्रकार चला। १०. संघ के लोग मन में हर्षोल्लास वहन करते हुए जब भटिण्डा पहुंचे तो उस नगर में सरसा का संघ मिल गया, या वक जन इतने थे कि जिसका कोई पार नहीं। १. घात-नगरकोट की यात्रा प्रारंभ हुई। दुलची नृप से फरमान लेकर चित्त में उत्साह पूर्वक भद्रेश्वरसूरि गुरु के वचनों को एकाग्र चित्त से धारणकर जब आडबर सहित भटिण्डा पहुंचे तो वहां सरसा का विशाल संघ आ मिला। द्वितीय भाषा भावार्थ१. उस नगर में वीकम ने प्रसन्न चित्त से जीमनवार किया। सभी लोग इस प्रकार कहने लगे कि इसने वित्त को पवित्र (कार्य में व्यय) किया। २. तलवंडी में आकर घरसिगड़ी जीमनवार किया और पार्श्वनाथ जिनालय में स्नात्रपूजा महाध्वजारोप सुविचार पूर्वक किया। ३. फिर सतलज नदी के तट लुधियाना पहुँचे। ऐसा लगता था मानो गंगा नदी पश्चिम में अवतरित हो गई हो। ४. वहाँ समस्त संघ ने तंबू-डेरा तान कर आवास किया जो एक कोश तक विस्तृत दिखाई देता था। ६० ] Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003821
Book TitleNagarkot Kangada Mahatirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherBansilal Kochar Shatvarshiki Abhinandan Samiti
Publication Year
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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