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________________ ७. धीर, वीर, गंभीर चित्त वाले, विनयवान, विवेकी, सद्विचारशील, जैन शासन के शृंगार, दारिद्रनाशक, अपने असंख्य गुणों से पृथ्वी के लोगों को रंजित किया है ऐसे उद्धर के पुत्र कल्पवृक्ष के सदृश हैं, जिनका मैं प्रसन्न चित्त से वर्णन करता हूँ। १. नाहर वंश के अलंकार भूत श्रेष्ठिराज नागदेव, उसका स्तुत्य पुत्र सुखदायक खेमंधर हुआ उसका नंदन सूगउ सद्गुणी था जिसका पुत्र उद्धरु हुआ। उसका पुत्ररत्न सद्विचारशील और साहसी वीकमसी ( विक्रमसिंह ) अपने भ्राताओं के साथ तारामंडल में चंद्र की भांति चिरकाल जयवंत है। १. एक दिन सारे परिवार को एकत्र कर वीकम ने अपने मन की सार बात कही-यदि आदि जिनेश्वर को वंदन करें तो सभी सुखों का संगम प्राप्त हो। २. भुल्लण ने कहा-संघ के पुरुषों से सहज शोभा मिले इसलिए वीर धवल को सरसा भेजकर ( भाई ) गुणराज से मंत्रणा की जाय । ३. उसने माणिकदेव मल्लिक से भेंट की जो शत्रुओं को सेना से ( भिड़ने वाला ) एक मात्र श्रेष्ठ सुभट है। मल्लिक ने सन्तुष्ठ होकर शिरोपाव दिया और कहा कि अपने मन के उत्साह पूर्वक यात्रा करो। ४. बड़गच्छ मण्डन युगप्रवर गणधर श्री वादिदेवसूरि हुए जो अष्ट कर्म रूपी गज घटा के लिए सिंह सदृश और श्रावकों को रंजित करने में अमृत-रसायन थे। ५. उनके पट्टानुक्रम मुनिशेखरसूरि हुए जिनके नाम से अशुभ दूर भग जाते है। उनके शिष्य भव्य रूपी कमल को प्रतिबोध करने में सूर्य सदृश श्री श्रीतिलकसूरि हुए। ६. उनके पट्ट रूपी समुद्र से चंद्र जैसे समृद्ध श्री भद्रेश्वरसूरि नाम के प्रसिद्ध ( आचार्य ) हैं। जिनके आदेश से शुभ मुहूर्त में अपनी शक्ति के अनुसार यात्रारंभ-प्रयाण किया। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Www.jainelibrary.org
SR No.003821
Book TitleNagarkot Kangada Mahatirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherBansilal Kochar Shatvarshiki Abhinandan Samiti
Publication Year
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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