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भावार्थ
१. आदि जिनेश्वर देव को प्रणाम करके और अंबिका देवी, सरस्वती के चरणों में नमस्कार कर कुलदेवी वांघुल की चरण सेवा कर, गुरु महाराज श्री मुनिशेखरसूरि को हार्दिक हषं पूर्वक वन्दन कर संघपति विक्रमसिंह ( वीकम ) का रास विकसित चित्त से कहूंगा ।
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जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में धन-धान्य से समृद्ध, वापी, कूप, उद्यानादि से प्रवर भटनेर ( नगर ) प्रसिद्ध है, जहाँ शत्रु सेना को पराजित करने वाला, न्यायप्रिय, शील गुण सम्पन्न, यादव कुल का शृंगार नरेन्द्र दुलची (राय) राज्य करता है ।
३. उस नगरी में नागदेव के पांच पुत्र - प्रथम खिमघर, द्वितीय गोरिक, तीसरा संघपति फम्मण चौथा कुलधर और पांचवाँ जगत को रंजन करने वाला कमल – हैं । ये पांचों शत्रुओं का नाश करने वाले पंच- पुरुष हैं।
४. वहीं नागदेव का नन्दन साह खिमधर निवास करता है जो ऋद्धिवान, जिनेश्वर की पूजा में रत, नाहर कुल का मण्डन है। उसके पुत्र गउ, ठकुरु, गुल्लउ, गुज्जउ, पवित्र गुणों के सागर, विशाल गुणों वाले और अपने वंश रूपी गगन में सूर्य की भाँति हैं ।
५. सुंगा का प्रथम पुत्र शुभ लक्षणों वाला सुदृढ श्रीचंद और दूसरा उद्धरु है जो बारह व्रतधारी और कुल का भूषण है । उसकी धर्मपत्नी तोडाही पृथ्वी पर निर्मल चित्तवाली है और विनय विवेकादि गुणों से अलंकृत मानो साक्षात् लक्ष्मी है ।
६. उसके कोख रूपी सरोवर में राजहंस, सद्विचारशील १ विक्कउ ( विक्रमसिंह), २ भुल्लणु, ३ केल्हण, ४ गुन्नउ ५ वीरधवल (पांच भ्राता) जगत में सारभूत गुणों के निधान, धर्म रूपीधुरा को धारण करने में वृषभ और लीला में गोविन्द की भांति इस परिवार संयुक्त मानो पूर्णिमा के चन्द्रमा की भांति सुशोभित है ।
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