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॥ घात ।।
विसम गिरिवर विसम गिरिवर गरुय लंघेवि लाहड़गढि संघ किहि करवि भत्ति सन्तोष सिरवरि नन्दवणि जत्त किय नगरकोटि संपत्त सुहकर चहुय पसाइ अठाहिय पूज महाधज देवि वोकम संघवइ भाव करु दाणु अणग्गलुदेइ ॥
चतुर्थ भाषा लीधउ ए चांदइ साहि इन्द्र पदो धण वेचि करे। हूवऊ ए न्हवणु जिणेसु पूज्यउ निय मणि रंगु धरे ॥१॥ वसु बन्धव ए वोधउ साहु वेचइ वित्तु अणंतु तहिं दीधि ए कुलह कवाई संसारचन्दि नरिंद वरि ॥२॥ गायहि केवि सुजाण गुणगण वीरधवल तणा ए। धनु धनु ए ऊबरु साहु धनु माता जिणि जाइयउ ।।३।। रूपिहि मदन समाणु दानिहि करणु अलंकरिउ । भुजबलि ए भीमु वदीतु सुधिय पणय सुरगुरु समउ ।।४॥ दालिदए गंजणु ए म(न) रंजणु रायह रूव वरो। अत्तिहि ए अछइ सुविचारु वीकमु संघपति जाणियइ ॥५॥ चालिय ए पुण घर रेसि मुकलाविवि सिरि आइ जिणु । ऋमि ऋमि ए संघ सहितु पहुतउ सिरि भटनयर पुरे ॥६॥ बंधव ए करइं उच्छाहु रंज्यउ दुलची राउ ताहिं । पहिरावइ ए बंधु सहितु वीकमु मनि आणंदियइ ॥७॥ वडगच्छ ए मंडण भाण मुनिसेहरसुरि सूरि वरो। तसु सीसिहि ए कोघउ रासु मुनिभद्रि मुनिवरि सुहदिणिहिं ॥८॥ अंबिक ए सासण देवि वांधुलदेवि पसाइ हिव । बंधव ए सउ संघपति वीकागरु जगि चिरुजयउ ॥९॥
॥ इति श्री संघपति वीकमसीह रासः समाप्तः॥
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