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________________ सरसइ पुरवरि मेलवि संघो, भवियह पाप जलह उल्लंघो। चल्लिउ तउ धरतउ घर डंबरु, नोसाणह रवि गज्जिउ अंबरु ॥७॥ तहि हयवर खुर रवि गिरि गज्जइ, चोर चरड़ मारगि सवि सज्जइ । पण दोलिय चिंधणह कहि, दाणु पिक्खि जण चित्ति चमक्कहिं ।।८।। गायण महुर सद्दि गायंति, अइ हरिसभरि भट्ट पढति । गुणि गरुयउ अनु गरुय परिक्कमु, इणिपरि चालिउ संघपति वीकमु ॥९॥ वीठणहडइ जाम पहूतउ, संघ लोक मणि हरिसु वहंतउ। तहि पुरि मिलियउ संघु सरसइ कउ, पारु न पामइ मग्गण जणक उ ॥१०॥ ॥ घात ॥ नगरकोटह नगरकोटह जात्र आरंभि फुरमाण दुलची निवह लेवि लेवि चित्ति उच्छाहु धरतउ भद्देसरसूरि गुरु वयणु एकि चित्ति मनि रंगि करत उ पहुतउ आडंबरि गहिय वीठणहंडइ जाम पुर सरसइ कउ तहि मिलिउ संघु अणगल ताम ॥१॥ द्वितीय भाषा तहि पुरि जीमणवार करि, वीकम रंजिउ चित्तु । त लोक सयल इणिपरि भणहि, इणि किउ वित्त पवित्तु ॥१॥ (त) तलवंडी आवेवि तहिं, सगृहीय जीमणवार । त ह्रवण महाधज पास जिण, मंदिरि किय सुविचार ॥२॥ त पहुतउ लोद्रहाणइय, सतलुद्र नई कइ तीरि । त दीसइ पश्चिम अवतरिय, गंगा जाम सरीर ॥३॥ त तहि आवासिउ संधु सहु गूडर चउरा ताणि । त. · जउ दीसइ विस्तारु तहि कोसइ एक प्रमाणि ॥४॥ त वइसाहइ सुदि पूनिमइ स्वातिनखत्रि गुरुवारि। त करक लगनि दस घडिय दिणि सुभ ग्रह तणइ प्रचारि ॥५॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003821
Book TitleNagarkot Kangada Mahatirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherBansilal Kochar Shatvarshiki Abhinandan Samiti
Publication Year
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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