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श्री मुनिभद्र रचित
संघपति वीकमसीह रास पणमवि आदि जिणंद देउ अनु अबिकदेवी। सरसति सामिणि पय नमेवि वांघुल पय सेवो ॥ वंदिवि गुरु मुनिसिहरसूरि मनि हरिसु घरेवी। संघपति वीकम तणउ रासु पणिसु विहसेवी ॥१॥ जंबूदीवह भरहखेत्रि धण धन्न समिद्धउ । वावि कूव आरामि पवरु भटनयरु पसिद्धउ ॥ राजु करइ दुलची नरिंदु अरियण दल भंजणु । न्यायवंतु शीलिहिं संजुत्तु यादव कुल मंडणु ॥२॥
नागदेव सुत पंच प्रथम खिमधरु पभणीजइ। बीजउ गोरिकु संघपत्ति फम्मणु सलहीजइ । चउथउ कुलधरू पंचमउ. कमल उ जगरंजणु। ए तिणि नगरिहि पंच पुरुष पचइ अरिगंजणु ॥३॥
तिहि निवसइ खिमघरु सुसाहु नगदेवह नंदणु । रिद्धिमंतु जिणपूय रत्तु नाहर कुल मंडणु ।। तासु पुत्तु सूंगउ पवित्तु ठकुरु गुण सायरु । गुल्लउ गुज्जउ गुण विसालु कुल गयण दिवायरु ॥४॥ सुंगा नंदणु पढमु सधरु सिरचंदु सलक्खणु । बारह व्रत संलीनू वीउ उद्धरु कुल भूषणु ॥ तोडाही तसु घरणि पुहवि निम्मल मनि सत्थे। विणय विवेय अलंकरिय किरि पच्चख लच्छे ॥५॥
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