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जिनेश्वर को नगरकोट में वन्दन करें। उनकी महिमा अद्भुत हैं, सेवन करने से भव से पार लगाते हैं।
२. कांगड़ा में उनका देहरा सुशोभित है जिसके दर्शन से आनंद होता है।
वे सुख रूपो तरुवर के कन्द हैं और दुख दारिद्र को दूर करते हैं। ३. वारिधि की भांति अति गंभीर, धरणीधर की भांति धीर हैं। उनका
पांच सौ धनुष का स्वर्णाभ शरीर सुहावना है। ४. पूजन करने से पाप नष्ट होते हैं, अंग में कभी आपदा नहीं आती।
शीघ्र ही संपदा प्राप्त होती है और रात दिन आनंद उल्लास रहता है। ५. अपने चित्त में संगीत-लय धारण करके प्रभु के आगे नाटक-नृत्य करना
चाहिए। श्रावक लोग उत्तम स्थान ज्ञात करके अपने वित्त-धन का
सद्व्यय करते हैं। ६. माता मरुदेवी ने जिन्हें कोख में धारण किया था, गुणों से परिपूर्ण,
सुयश के निवास स्थान हैं। वे जिनेश्वर केवलज्ञान से सूर्य की भांति
लोक में प्रकाश करते हैं। ७. इसी प्रकार साधुकोत्ति सद्गुरु की कृपा से साधुसुन्दर आनंदपूर्वक
तीर्थ के सद्गुणों को कहते हैं, दर्शनों से भरपूर संतुष्ठि होती है।
कवि परिचय साधसून्दर-ये सुप्रसिद्ध खरतरगच्छीय विद्वान साधुकीति उपाध्याय के शिष्य थे। आपका रचना काल १७ वीं शती का उत्तरार्द्ध है। आपकी रचनाएँ-१. उक्ति रत्नाकर, २. धातु रत्नाकर ( सं० १६८० दीवाली), ३. शब्द रत्नाकर, ४. अरनाथ स्तोत्र सावचूरि, ५. शांतिनाथ स्तुति वत्ति ६. पार्श्वनाथ स्तुति आदि उपलब्ध हैं।
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