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श्री साधुसुन्दर कृत नगरकोट मंडणा आदीश्वर गीतम् नाभि भूपाल कुल चंदलउ, हंस गति श्री जिणराय रे । देव नरनाथ प्रणमइ सही, भाव करि जेह ना पाय रे ॥१॥ नगरकोटइ प्रभु भेटियइ, आदि जिणेसर सार रे। अद्भुत महिमा जेहनी, सेवतां द्यइ भव पार रे॥ आंकणी ॥ कांगुडइ देहरउ दीपतउ, देखतां होइ आणंद रे। दुक्ख दारिद्द दूरइ करइ, सुक्ख तरुवर तणउ कंद रे ॥२॥न०।। नीरनिधि भूरि गंभीरिमा, धरणिधर सार परि धीर रे । सोवन वणं सोहामणउ, पंच सय धनुष सरीर रे ॥३।। न०॥ पूजतां पाप नासइ सदा, आपदा नावए अंगि रे। संपदा वेगि आवी मिलइ, अहनिसइ उल्हसइ रंग रे ॥४॥न०॥ आगलइ नाटक नाचियइ, धरिय संगीत निज चित्त रे । उत्तम थानक जाणि नइ, वावरइ श्रावक वित्त रे॥५॥न०॥ जननि मरुदेवि उयरइ धरयउ, गुण भरयउ सुजस निवास रे । केवलनाण सूरिज जिसउ, करइ जिण भुवनि प्रकास रे॥६॥०॥ तित्थ ना सुगुण इणि परि भणइ, सुगुरु साधुकित्ति पसाइ रे । साधुसुन्दर रंगइ करी, दरसणइ तोष भर थाइ रे ॥७॥न०॥
इति श्री नगरकोट मंडण आदीश्वर गीतम्
भावार्थ१. नाभि नरेन्द्र के कुल में चंद्रमा, हंस जैसी गति वाले जिनराज है जिनके
चरणों में देव और नरेन्द्र भावपूर्वक वन्दन करते हैं। उन श्री आदिनाथ ५० ]
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