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________________ १५-१६-१७-१८. रंग मंडप खुला है जहाँ कौतुक - नाटक देखने के लिए लोग एकत्र होते हैं । सब ने मिल कर सामग्री ( साज-सामान ) तैयार की हैं । ( महिलाएं ) सिर गूंथ कर स्वर्णमय केवड़ी ( खूप मस्तक पर धारण करने का आभरण ), कानों में झलकते हुए ( कर्णफूल ), हाथों में खलकती हुई सोने की चूड़ियाँ हैं, सिर पर रखड़ी सुशोभित हैं, श्रेष्ठ काजल से नेत्र आंजे हुए हैं, हृदय पर नवसर हार है, पैरों में 'नुपुर रुणझुणकार करते हैं । नेत्र- पटोलड़ी पहन कर मस्तक पर सुरंगी चूनड़ी ओढी हुई है । इस प्रकार रूप लावण्य में रंभा को हराती हुई महिलाएँ श्री आदीश्वर भगवान को देखती हैं । अवसर पाकर नृत्य करती है और उल्लास पूर्वक प्रभु के गुण गायन करती हैं । १९. इस प्रकार सद्गुणों को मन में धारण कर प्रभु को भेंट कर हर्षित चित्त होकर श्रीसंघ अपने घर लौटा, मणि माणिक और रत्नों से वधाया गया । 1 २०. ऐसे अभयधमं गणि ने नगरकोट के भुवन दिनकर आदिनाथ जिनेश्वर की यात्रा कर वंदन नमस्कार और विविध प्रकार से भक्ति पूर्वक संस्तवना को । वे धर्मनायक, सुखदायक, देवी अम्बिका से परिवृत हैं । वह धन-धान्य करने वाली दुर्गति निवारक और स्वामी की महिमा को अत्यन्त बढ़ाने वाली है या दुर्गति को निवारण करने वाले स्वामी अत्यन्त महिमा युक्त है । 2 कवि परिचय अभयधर्म – ये खरतरगच्छीय वा० नागकुमार के शिष्य थे । सुप्रसिद्ध afa कुशललाभ इन्ही के शिष्य थे । कुशललाभ ने इनको 'उपाध्याय' लिखा है । सं० १५७९ में इन्होंने दश दृष्टान्त बालावबोध लिखा था -- - जिस की प्रति कलकत्ता संस्कृत लायब्रेरी व बाड़मेर के यति इन्द्रचंदजी के संग्रह में है । इसकी रचना श्री जिनहंससूरिजी के विजय राज्य में श्रेष्ठि करणा के आग्रह से की थी । Jain Educona International For Personal and Private Use Only [ ४९ www.jainelibrary.org
SR No.003821
Book TitleNagarkot Kangada Mahatirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherBansilal Kochar Shatvarshiki Abhinandan Samiti
Publication Year
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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