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________________ नदी दूसरी बाणगंगा और तीसरी पातालगंगा को सुख पूर्वक पार करके बड़े भारी तंबू तान के उतरे ( या तोव प्रवाह को पार किया)। ८. जब विनायक पाज चढ़े तो रानी सरोवर की पाल, कूप, वापी और वन को देखते हुए विशाल नगर नजर आया। जिनालय की ध्वजा और कलश अत्यन्त सुन्दर दिखलाई देते थे। नगर में पहुंच कर वहां परम आनंद पूर्वक जिन-वन्दन किया। ९. अगणित पहाड़ी झरने झरते हुए प्रवाहित थे। आम्र, जामुन, और खिरणी आदि अढार भार वनस्पति थी। निर्मल जल से परिपूर्ण बाणगंगा नदी वह रही थी जिसके तटवर्ती वन में शुक, सारस और राजहंसादि सम्मानित पक्षी परिपूर्ण हैं । १०. नगरकोट में गढ-मठ-मंदिर और ऊँचे प्रासाद हैं। जहाँ सुन्दर जिनालय हैं मनोहर वन-वाटिका है। कूप-सरोवर और बहुत से स्वर्णमय कलश और तोरण सुशोभित हैं। धन-धान्य और स्वणं से भरा हआ नगर इन्द्र की राजधानी अमरावती को भी जीतने वाला है। सोवन वसति में स्वर्णमय काया वाले महावीर स्वामी कंचनगिरिमेरु पर्वत को भांति घोर हैं, उसे राजा रूपचंद ने स्थापित किए थे। खरतरवसही में आदीश्वर भगवान के प्रसन्नता पूर्वक दर्शन किए। हृदय हष से उल्लासित हो गया, मानो अमृत ही प्रविष्ट हो गया हो। १२. कांगड़ा कोट पर बालाएं पहुचती हैं तो माली लोग मनोल्लास पूर्वक पुष्प चंगेरी लेकर दौड़ते हैं। वे पद पद पर कौतुक देखती हुई, शुभ भावों से पापों का प्रक्षालन करती हुई तीर्थराज भेटती हैं। १३. वालक, बकुल, चंपक, कुंज, केवड़ा आदि बहुमूल्य पुष्प श्री गुलाब और मचकुंद हैं। इन पुष्पों के साथ हर्ष पूर्वक धोती पहिनकर चंदन केसर और कस्तुरी से आदिनाथ भगवान की पूजा करते हैं। १४. रंगीन महाध्वज की पूजा कर चढ़ाते हैं, पुण्य का भण्डार भरते हैं, अपार धन बाँटते हैं। आल्हिगवसहो में स्फटिक मय चौवीस तीर्थंकर और सीमंधर स्वामी की प्रतिमाएं हैं उन्हें नमस्कार करता हूँ। ४८ ] Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003821
Book TitleNagarkot Kangada Mahatirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherBansilal Kochar Shatvarshiki Abhinandan Samiti
Publication Year
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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