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भावार्थ१. सद्गुरु के चरणों में प्रणाम कर पाप का भय मिटाने के लिए सुज्ञानी संघ नगरकोट स्थित जिनेश्वर को भेटने-यात्रा हेतु चला। पालखी,
चकडोल, सेजवाल गाडियों के वाहनों का साधन है बैलों और ऊंट २. शुभ दिन और सौम्य-शीतल वार में हर्ष पूर्वक कुंकुमपत्रिकाएं लोगों को
बुलाने के लिए प्रेषित की गई। संघपति पदवी को धारण कर चारों दिशाओं का संघ सपरिवार आने लगा उल्लास पूर्वक सभी नरनारी
नवरस पूण नृत्य करने लगे। ३. श्रेष्ठ स्थान महमदपुर में मनोहर जिनालय देखा और अजितनाथ
व सुखकारी शान्तिनाथ जिनेश्वर को वंदन किया। फिर हिसार कोट में अति सुन्दर खरतरवसही है जहां अजितनाथ जिनेश्वर हैं जिनके
मैं बारंबार दर्शन करूंगा। ४. सम्मियाणि (समाणा) नगर में चित्त को प्रसन्न करने वाले आदीश्वर
भगवान, सींहनद में पार्श्वनाथ स्वामी की परम आनंद पूर्वक पूजा करूंगा। कोठीनगर में सुविशाल पार्श्वनाथ और महावीर सुशोभित हैं वे देखने में ऐसे मनोहर लगते हैं मानो अभिनव चंद्रमा ही उदित
हुए हों। ५. अब विशाल संघ बड़े भारी आनंद से परिपूर्ण हो आगे चला तो प्रथम
उकाली ( चढाव-चोटी ) चढते हो हिमालय की शिखरमालाएं दीखने लगी मानो वे आदिनाथ स्वामी के जिनालय की सुविशाल ध्वजाएं
हों। चारों ओर की पर्वतमाला को टगमग टगमग देखी। ६. आम, जंभीरी, इमली, केला, दाडिम, द्राक्ष एवं वड़बोर, खींप आदि
वनफल भी बहुत थे नंदनवन (नंदौन) में मार्ग में बहुत प्रकार की वनस्पति है, वहां मल्लिनाथ जिनेश्वर की विशाल प्रतिमा की पूजा की। ७. गोपाचल गढ पर नेमिनाथ स्वामी को वन्दन किया, कोटि नगर में पार्श्वनाथ स्वामी, नंदपुर में शांतिनाथ जिनेश्वर हैं। पहली व्यास
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