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श्रीजयसागरोपाध्याय कृत तीर्थराजी स्तवन
के चार श्लोक विज्ञप्ति त्रिवेणी में प्रवत्तक श्री कान्तिविजयजी के संग्रहस्थ प्राचीन पुस्तक में जयसागरोपाध्याय कृत तीर्थराजो स्तवन की चार गाथाएँ, प्रकाशित हैं जिसमें फरीदपुर के सं० सोमं के संघ के साथ जाकर उन्होंने यात्रा की उसका वर्णन है
अपिच नगरकोटे देश जालन्धरस्थे प्रथम जिनपराजः स्वर्ण मूत्ति स्तु वीरः । खरतर वसतौ तु श्रेयसां धाम शान्तिस्त्रय मिद मभिनम्याह्लाद भावं भजामि ॥१८॥ (१)
आनन्दाश्रु जलाविले ममदृशौ जाते चिरोत्कण्ठया, दिष्टया कङ्कटक स्थितः प्रथमतो दृष्टो यदादिप्रभुः । ततिक साऽपि सरस्वती स च गुरु नूनं सुप्रसन्नो यतो, जिह्वा तद्गुण वर्णनादभिनवान्नाद्यापि विश्राम्यति ।।१९।। (२) श्री गोपाचल तीर्थे शान्ति, कोटिल्लके परंपार्श्वम् । नन्दनवन-कोठीपुर पूज्यं प्रणमामि वीरमहम् ।।२०।। (३) एते तेषु सपादलक्षगिरिषु प्रत्यक्ष लक्ष्याः खलु क्षेमा एवं मया चतुर्विध महासङ्घन चाभ्याचिंताः प्रायः काञ्चन कुम्भ शोभित गुरु प्रासाद मध्यस्थिताः सान्द्रा नन्द पदं दिशन्तु मम ते विश्वत्रया स्वामिनः ॥२१॥ (४)
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