________________
भावार्थ१. जालन्धर देश के नगरकोट में प्रथम जिनेश्वर आदिनाथ, स्वणमय
प्रतिमावाले महावीर स्वामी और खरतर वसति में कल्याण के धाम श्री शान्तिनाथ, इन तीनों को वन्दन कर प्रसन्नता अनुभव करता हूं।
२. जब पहले पहल कांगड़ा स्थित आदिनाथ स्वामी को देखा तो चिरोत्कण्ठा के कारण मेरे नेत्रों से आनन्दाश्रु जल भर आया। तो क्या वह सरस्वती
और वे गुरुदेव निश्चय ही मेरे पर सुप्रसन्न हैं जिस से मेरी जिह्वा उनके गुणों को वर्णन करने में आज भी विश्राम नहीं पातो अर्थात् नहीं थकती। ३. श्री गोपाचल तीर्थ में शान्तिनाथ, कोटिल में पार्श्वनाथ स्वामी एवं
नन्दौन व कोठीपुर में पूज्य श्री महावीर स्वामी को मैं प्रणाम करता हूँ।
४. ये सपादलक्ष पर्वत में निश्चय ही प्रत्यक्ष कल्याण के लक्ष्य से मैंने और
चतुर्विध महासंघ ने प्रभु की अभ्यर्चना की है-पूजा की है। कञ्चनमय कलशों वाले प्रासाद के मध्य विराजित तीन लोक के नाथ मुझे शाश्वत घन आनन्द का पद (मोक्ष) प्रदान करें।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org