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________________ पूजा, गीत और भक्ति करके देववंदन किया मनचिन्तित-मनोरथ सफल हुए, सब के मन की आशा पूर्ण हुई, मन में श्रद्धा ( बढ़ो) १३. इस प्रकार आदिनाथ जिनेन्द्र को भेट कर कुशल क्षेम पूर्वक सारा संघ अपने घर लौटा। इससे ऋद्धि प्राप्त होती है और अनेक प्रकार का सुख होता है। यह महिमा जानकर जो भाव पूर्वक यात्रा करता है वह सिद्धक्षेत्र को यात्रा का लाभ पाता है। कनक सोम कवि का सविस्तर कथन है। ॥ नगरकोट का आदोश्वर स्तवन पूर्ण हुआ, सं० १६३४ वर्ष में पं० कनकसोम गणि ने यह बनाया। कवि परिचय कवि कनकसोम-ये खरतरगच्छोय वा० अमरमाणिक्य गणि के शिष्य थे। ये नाहटा गोत्रीय और अच्छे विद्वान कवि थे। सं० १६२५ में वा. साधुकीतिगणि के साथ अकबर के दरबार में आगरा गए थे और बाद में दूसरी वार सं० १६४८ में भी श्री जिनचंद्रसूरिजी के साथ अकबर के दरबार में लाहौर गए थे। इनको निम्नोक्त रचनाएं उपलब्ध हैं : १. जइत पदवेलि सं० १६२५ आगरा २. जिनपालित जिन रक्षित रास सं० १६३२ नागौर ३. आषाढभूति धमाल स० १६३२ खंभात ४. हरिकेशी सन्धि सं० १६४० वेराट ५. आद्र कुमार धमाल सं० १६४४ अमरसर ६. मंगलकलश फाग सं० १६४९ मुलतान ७. थावच्चा सुकोशल चरित्र सं० १६५५ नागौर ८. कालिकाचार्य कथा सं० १६३२ जेसलमेर ९. हरिबल सन्धि १०. श्री जिनवल्लभीय ५ स्तवनाचरि सं० १६१५११. गुणठाणा विवरण चौ० गा० ९० सं० १६३१ आगरा १२. नववाड़ गीत गा० २९ १३. आज्ञा सज्झाय गा० १७ १४. शांतिनाथ स्तवन गा० २९ १५. नेमिनाथ फाग गा० ३० रणथंभोर १६. शाश्वत जिनस्त० गा० २३ १७. जिनकुशलसूरि स्त० सं० १६६० मालपुरा १८. नगरकोट स्तवन सं० १६३४ १९. श्री जिनचंद्रसूरि गीत गा० ११ २०. श्री जिनचंद्रसूरि गीत गा० ५ २१. कल्पसूत्र बालावबोध पत्र २२३ । [ ४१ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003821
Book TitleNagarkot Kangada Mahatirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherBansilal Kochar Shatvarshiki Abhinandan Samiti
Publication Year
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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