SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ऋषभदेव तुष्ट हुए हैं। पूजा करके पारणा करो - देवीने कहा । जय जयकार हुआ। गुरु के बिना कौन इज्जत रखता है । ६. वहाँ नाली नहीं है पर प्रभु का ( स्नात्र ) जल नहीं रहता, यह महिमा सुनकर अनेक लोग यात्रा करने जाते हैं । हमारे मन में भी भावना हुई और यात्रा की गई उसकी मधुर वार्त्ता भव्यजन सुनें ! ७ जालंधर देश देवभूमि को जगत जानता है जहां साल, ताल और देवदार के वृक्ष हैं, प्रचुर वापी और जलपूर्ण नदियां हैं। नौका द्वारा सुख पूर्वक सतलज महानदी को पार करके सपादलक्ष पर्वत जो मटीया है और वेलि वृक्षादि अंकुरित है । ८. स्थान स्थान पर संघ डेरा करके उतरता है पर कोई डाल नहीं तोड़ता । तरुवर पुष्प पगर से महक रहे हैं । राजपुरा में छत्तीस पौन निवास करती है । झरणों का पानी निवाण में बहता है और समस्त संघ सुख पूर्वक वहाँ चलता है । ९. जहां पातालगंगा खलखलाहट करती हुई वहती है— लोग वहां स्नान करते हैं । कोकिल की वाणी - टहूकड़ा करती हुई कूजती है । एक से एक चढ़ाव दुष्कर है, जहां विनायक का स्थान है वहां से नगरकोट निकट दिखाई देने लगा । १०. कांगड़ा गढ़ नगर देखकर सभी हर्षित हुए और लंकड़ीया वीर के निकट बाणगंगा को पार कर पैदल मार्ग से आये । उज्ज्वल धोती पहन कर समस्त संघ ने मिलकर आदीश्वर व चक्रेश्वरी को भेटा व फलनारियल चढ़ाए । ११. पद्मासन मुद्रा में विराजमान सुहावने भगवान को नेत्रों से दर्शन किया और स्वामी पर वारंवार निछरावल कर के दान दिया । शांतिनाथ और महावीर स्वामी के जिनालय में पूजा करके संघ ने शुभ भावना भाई । राजमहल के द्वार पर जयचंद राजा प्रतीक्षा करता मिला । १२. तुम जग नायक हो, तुम ही जगत् के बन्धु और नाथ हो ! सेवक की सुधि लो | हे स्वामी, सभी ( अनन्त ) शाश्वत सुख दो ! इस प्रकार ४० ] Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003821
Book TitleNagarkot Kangada Mahatirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherBansilal Kochar Shatvarshiki Abhinandan Samiti
Publication Year
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy