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तिहां खाल विणु पाणीय रहइ नाही,
इसी महिम सुणि यात्रा अन्नेक जाही। हूअउ अम्ह मनि भाउ यात्रा कराणी,
तिम भवियण सुणहु मीठी कहाणी ॥६॥
॥ ढाल॥ देश जालंधर देव थानक जगि जाणियइ रे साल ताल देवदारु
परघल रे परघल वावि नदी जल पूरीयउ जी। सतरंज महानदी नावा सुखि ऊतरी जी सवालाख गिरिराजि ।
मटीया रे मटीया परबत वेलि अंकूरीयउ जी ॥७॥ ठामि ठामि संघ देरा दे करि ऊतरइ जी कोइ न भंजइ डाल
तरवर रे तरवर फल पगर महकी रहया रे। राजपुरा जिहां पवन छतीस अंतरि वसइ जी नीझरणे हि निवाण
सुखमइ रे सुखमइ संघ सहू तिह कणि वहइ रे ॥८॥ जिहि पातालगंगा खलहलखलहल वहइ रे लोक करइ तिहांन्हाण,
वाणी रे वाणी कोइल करइ टहूकड़ा जी। इक इक थकी ऊकाली चडतां दोहिली रे जिहां विनायक थान
तिह कणि रे तिह कणि नगरकोट देख्या ढूकड़ा रे ॥९॥ गढ़ कांगड़ा नगर पेख्यां हरख्या सहू रे वीर लंकडीया तीरि ।
आव्या रे आव्या बाणगंगा पगिवटि तरी रे। पहिरि धोवति उज्जल सब संघ मिली करी रे फल नालेर चढाइ
भेटया रे भेटया आदीसर चक्केसरी रे॥१०॥ बइठा पदमासन भगवंत सुहामणा रे, नयणे देख्या स्वामि
वलि रे वलि दीजइ दान उवारणइ रे। संतोसर महावीर भुवणि पूजा करी रे, भावन भावइ संघ
जइचंद रे जइचंद राजमहल कइ बारणइ रे ॥११॥ ३८ ]
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