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________________ णमवि गुरुचरण कमल निज हाथ जोड़ी ; जिम कवि कनकसोम कृत श्री नगरकोट आदीश्वर स्तोत्र ( सं० १६३४ ) करिसु थवन श्री ऋषभ ना मान छोड़ी । लेषइ, सेजि तीरथ लाभ तिम नगरकोट्टइ कहचा अति विशेषइ ॥ १ ॥ जिम राउ रूपचंद आगइ विचार, गुरे लाभ अति कहउ सेतुज्जि सार । महिम सुणीय सिधखेत्री रूपचंदइ, लीयउं अभिग्रह अन्न कहां देस जालंधर अतिि दूरि, Jain Educationa International गुरे अंबिका ध्यानि करि निकट आणो, जिन शासन कहां सेतुज सिखर मनि भाव पूरि । कहइ अंबिका कवण काजइ हकारी, निशि देहरउ करीय प्रतिमा तहां दीयउ दरस सुपिणइ देवी राउ ऊठउ, नउ तित्थ वंदइ ॥२॥ गुरे बात जे कहोय तेहिज सकारी । अणाई, धवलगिरि हती ते अति बणाई ||४|| करीय पूज करि पारणउ देवि भाषइ, उन्नति लाभ जाणो ||३|| तुम्हि रिषभ आदीसर देव तूठउ । जय सबद कुण गुरु विणा माम राखइ || ५ || [ ३७ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003821
Book TitleNagarkot Kangada Mahatirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherBansilal Kochar Shatvarshiki Abhinandan Samiti
Publication Year
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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