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________________ ६. इस विषम कांगड़ा के गढ़ पर मैं चढ़कर चमत्कृत हो गया । सुशमराजा वहाँ की कान्तिमय प्रतिमा को हिमालय से लाया था । ७. एक रात्रि में अम्बादेवो ने वहां श्रेष्ठ प्रासाद प्रस्तुत कर दिया, और आदीश्वर भगवान को प्रतिमा की स्थिर स्थापना की, वहीं दिन दिन हर्ष उत्साह होता है । ८. आलिगवसति में मणिमय चौवीस प्रतिमाओं को वन्दन करें वह वर्ष, भी धन्य, मास भी धन्य, दिन भी धन्य और मुहूर्त भी धन्य है । ९. राय विहार जो राजा श्री रूपचंद के बनवाया हुआ महावीर स्वामी का जिनालय है उसमें कंचनमय वीर जिनेश्वर की निर्मल प्रतिमा है । १०. घिरिया ( धीरराज ) श्रीमाल के भवन ( जिनालय ) में पार्श्वनाथ स्वामी की पूजा करो। चौथे जिनालय में श्री आदिनाथ भगवान को प्रणाम कर आशा पूर्ण हुई । ११. पांचवाँ खरतर प्रासाद ऊँचा और श्वेतवणं का है जहां सोलहवें तीर्थंकर श्री शान्तिनाथ स्वामी के दर्शनों से आनंद होता है । १२. आज सारे मनोरथ पूर्ण हुए, आज जन्म पवित्र हो गया, आज मैंने दर्शन, ज्ञान और चारित्र को निर्मल कर लिया । १३. हाथ जोड़कर प्रभु से प्रार्थना करता हूं कि भव समुद्र के निवास से उबारो-रक्षा करो ! हे चौबीस जिनेश्वर ! बोधि दो ( जिससे मेरा ) शाश्वत सुखों में निवास हो । १४. संवत् १४९७ में जो जिनराज की वंदना की, चैत्यगृह - प्रतिमा की स्तवना की और चरण वन्दना की । १५. वे शाश्वत जिनालय जो नन्दीश्वर, पाताल और देव विमानों में जो जिन बिंब हैं, उन्हें सब समय वन्दन करो । श्री नगरकोट की चंत्य परिपाटी पूर्ण हुई । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003821
Book TitleNagarkot Kangada Mahatirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherBansilal Kochar Shatvarshiki Abhinandan Samiti
Publication Year
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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