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सिरियमाल धिरिया भवणि पूजउ जिणवर पास । आदिनाथ चउथइ भवणि पणमिय पूरिय आस ॥१०॥ धवलउ ऊंचउ पंचमउ ए खरतर तणउ प्रासाद । सोलसमउ सिरि संति जिण दीठइ हुइ आणंद ॥११॥ आज मणोरह सवि फलिय आज जनम सुपवित्त । निम्मल निम्मिय अज्ज मए दंसण नाण चरित्त ॥१२॥ कर जोड़ी प्रभु वीनQ ए राखि राखि भव वास । देहि बोहि चउवीस जिण सासय सुक्ख निवास ॥१३॥ संवत चउदसताणवइ (१४९७) ए जे वंदिय जिणराय । चेईहर पडिमा थुणिय भगतिहि पणमिय पाय ॥१४॥ इय सासय जे देवकुल नंदीसर पायाल। अमर विमाणे बिंब जिण ते वंदउ सविकाल ॥१॥
॥ इति श्री नगरकोट चैत्य परिपाटी॥
भावार्थ१. जालंधर देश स्थित जिनेश्वर को भक्ति पूर्वक वन्दन करूंगा। वहां तो ___ स्थान स्थान कौतुक कलित है और बहुतसे कन्द और वृक्ष विकसित हैं। २. पद पद पर निर्मल शीतल जल और ठण्ढो हवा चल रही है, गोपाचल
पर श्री शांतिनाथ प्रभु समस्त शांति-सुख को करने वाले हैं। ३. विषम मार्ग है और पाताल गंगा के सभी घाट विषम हैं। सपादलक्ष
पर्वत के विशाल शिखर हैं और निर्मल जल है। ४. बाणगंगा का पानी निर्मल है और बारहों मास वहता है। गढ, मढ,
मन्दिर, वापी, सरोवर और देवताओं के निवास दिखलाई देते हैं। ५. अत्यन्त विशाल हरे-हरे वृक्ष और अपार बेलें हैं । बहुत प्रकार के फल.
फूल दिखलाई देते हैं और अढार-भार-वनस्पति विकसित है।
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