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________________ ११. पेथड़ के जिनालय को देखो उज्वल पाषाणमय शिखर ऊँचे स्तंभों पर विपुल पुत्तलिकाएं हैं, लगता हैं, मानो स्वर्गं विमान ही न हो ? १२. इसमें आदीश्वर भगवान की विशाल प्रतिमा है, मानो पुण्य का भंडार ही प्रगट हो गया दिखलाई देता है । १३. संसार वे धन्य है जो पेथड़राय के विहार में प्रथम जिनेश्वर के चरण कमलों की चंदन- कुंकुम से पूजा करते हैं । १४. मन्दिरों - मन्दिरों में समस्त जिनेश्वर की विविध प्रकार से हर्ष पूर्वक पूजन-वन्दन करके परमानंद प्राप्त किया । १५. व्यास नदी के तटपर नंदौनपुर शृंगार चौवीसवें तीर्थंकर त्रिशलानन्दन ( महावीर प्रभु ) को वंदन करें । १६. गुण रूपी मणि रत्नों की खान, वांछित - कल्पतरु चौवीसवें जिनेन्द्र को कोठीनगर में प्रणाम करें । १७. इन्द्रपुर में मानो श्रेष्ठ उदयगिरि पर उज्वल सूर्य उदय हुआ है। ऐसे सुख के निधान पार्श्वनाथ स्वामी को प्रणाम करो । १८. सं १४८८ में समस्त संघ ने यात्रा की । पाप पटल सब झड़ गए - गिर J गए और गात्र निर्मल हुआ । Jain Educationa International 000 For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org [ २७
SR No.003821
Book TitleNagarkot Kangada Mahatirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherBansilal Kochar Shatvarshiki Abhinandan Samiti
Publication Year
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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