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भावार्थ१. निर्मल जालंधर मंडल में नगरकोट श्रेष्ठ तीर्थ है। जो वहाँ आदिनाथ
जिनेश्वर को वन्दन करता है, उसका जन्म सुकृतार्थ है । २. नगरकोट में उज्ज्वल श्वेतवर्ण के चार विशाल देवकुल-जिनालय हैं जो
स्वर्णमय दण्ड और कलश युक्त होने से पुण्य प्राग्भार जैसे चमक
३. नेमिनाथ भगवान के समय कांगड़ा कोट के शिखर पर राजा सुशर्म ने
आदिनाथ को अंबिका के सहित स्थापित किया। ४. परमगुरु आदिनाथ जिनेश्वर की जो भाव सहित पूजा करते हैं वह मनुष्य
और स्त्रियाँ जन्म जन्मान्तर में नव निधि का विलास करते हैं। ५. भगवान ऋषभनाथ के दर्शन से सभी पाप दूर पलायन कर जाते हैं
क्योंकि त्रिभुवन में सूर्योदय होने पर अन्धकार कैसे स्थिति कर सकता है।
६. दूसरे मन्दिर में श्री वर्द्धमान जिनेश्वर को वन्दना करें। वे चन्द्र की
भांति नयनाभिराम हैं और संसार रूपी कन्द का उन्मूलन करने वाले हैं। ७. स्वर्ण वर्ण शरीर वाले प्रभु गिरिराज परस्वर्ण कान्ति परिवृत हैं। स्वर्ण
वसति में वीर प्रभु को सोने के फूलों से पूजा करें। ८. तीर्थ पर सुन्दर मण्डप मण्डित बिम्बावली को जो नमस्कार करता है
वह मुक्ति रमणी के साथ अभिनव विलासोत्सव करता है । ९. खरतर वसही रूपी कमल वन में राजहंस के सदृश श्री शांति जिनेश्वर
की पूजा करो जिनके दर्शन मात्र से कल्याण होता है। १०.. अत्यन्त सुहावने श्री शांतिनाथ जिनेश्वर के ज्यों ज्यों दर्शन होते हैं
त्यों त्यों मन में परम आनंद और नेत्रों में अमृत का प्रवेश होता है । २६ ]
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