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श्री नगरकोट तीर्थ वीनती
( स० १४८८ ) जालंधरि मंडल विमल, नगरकोट वर तित्थु । जे तहि वंदय आदि जिण, ताह जन्म सुकयत्थु ।।१।।
नगरकोट उज्जल धवल, देउल च्यारि विसाल । दंड कलस सोवन्न मइ, झलकइ पुण्य कमाल ॥२॥
वारइ नेमीसर तणए, थापिय राय सुसरंभि। आदिनाइ अंबिक सहिय, कंगडकोट सिरम्मि ॥३॥
आदि जिणेसर परम गुरो, जे भावहि पूयंति । जम्मि जमंतरि नारिनर, ते नव निहि विलसंति ॥४॥
रिसहनाह दंसणि सयल, पाव पलाइ दूरे। अंधकारु किम थिति करए, तिहुअण उग्गय सूरे ॥५॥
दूजय देउलि वंदिय ए, बद्धमाण जिणचंदो। नयणाणंदण चंद जिमि, उम्मूलय भव कंदो॥६॥ सोवन पर गिरि परिवरिओ, सोवन वन्न सरीरो । सोवन फूलहि पूजिय ए, सोवनवसही वीरो ॥७॥ तित्थ जि बिबावलि नमइ, मंडपि मंडिय चंग। सिद्धि वधू सउं ते करइ, नव नव उच्छव रंग ॥८॥ खरतर वसही कमलवणि, रायहंस सम्माण । संति जिणेसर पूजिए, दीठह हुय कल्लाण ॥९॥
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