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१२. नंदौन में चरम जिनेश्वर-महावीर स्वामी चिरकाल जयवंत हों।
जिनके दर्शन से जगत चकोर की भाँति परम आनंद प्राप्त करता है। कोटिल ग्राम में अभिराम श्री पाश्वनाथ स्वामी की प्रशंसा करता हूँ।
मेरा मन उनके गुण रूपी आम्रोद्यान में कोकिल की भाँति रमण करे। १३. स्वर्ण कलश शोभित जिनालयों में इन सब देवों की स्तुति की। कोठी
नगर के देवालय में वीर जिनेश्वर की सेवा करता हूँ। पांचों तीर्थों को जब नमस्कार किया तो दुखों को जलांजली दी, सुख का प्रसार
मिला और मोक्ष का द्वार प्राप्त किया। १४. तीर्थ यात्रियों का मंगल हो, तोर्थ मार्ग का मंगल हो ! मैंने जिससे
सुखपूर्वक मुक्ति सुन्दरी की मांग भरी। स्त्रियाँ तो घर घर में बहुत हैं पर वह जननी और वह नगर धन्य है जिसकी कोख से उत्पन्न नर
तीर्थ यात्रा का पुण्य संचय करते हैं । १५. इस प्रकार सपादलक्ष पर्वत के जिनेश्वरों का स्मरण किया तो हमारी
आशा पूर्ण हुई। मैं जिन शासन का सेवक जयसागर ऐसा बोलता हूँ। १६. इनको स्मरण करने से नरक गति को योग नष्ट होता है इनका स्मरण
करने से स्वर्ग के भोग प्राप्त होते हैं। इसलिए अहो भव्यजन ! तुम आज यह स्तवन पढ़ो, सुनो, कार्य सिद्ध होगा।
१७. इन नगरकोट प्रमुख स्थानों में जो मैंने जिन वन्दन किया वह वीर
लउंकड़ और ज्वालामुखी देवी (की कृपा से ) मानो, वंदन किया। अन्य भी जो कोई स्वर्ग, भू मंडल, नागलोग में संस्थित ( जिन बिम्ब) हैं उन्हे सबको आज मैं हाथ जोड़कर वंदन करता हूँ, अचिन्त्य ऋद्धि स्फुरित हो ! यह श्री जयसागरोपाध्याय कृत नगरकोट चैत्य परिपाटी संपूर्ण हुई !
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