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भास। कंचणमय कलसिहिं सहिय ए च्यारइ प्रासाद । च्यारइ चिहुँ वरणिहिं नमिय च्यारइ हरई विषाद । गोपाचलपुर सिरि मउड संतिनाह जग सामि । कामिय फल कारणि रसिय लोणउ छउं तसु नामि ॥११॥ नंदवििहं नंदउ सुचिरु चरम जिणेसर चंद । जग चकोरु जसु दंसणिहिं पामइ परमाणंद ॥ पास पसंसउ कोटिलए गामिहिं महि अभिरामि । मह मन कोइलि जिम रमउ तस गुण अंबारामि ॥१२॥ हेमकुंभ सिरि जिण भवणि ए सवि थुणिया देव । देवालइ कोठिनयरि करउं वीरजिण सेव । दुक्खह दिन्न जलंजलिय सुखह लद्ध पसारु। तीरथ पंचइ जइ नमिय पामिय मोख दुयार ॥१३॥ मंगल तीरथ पंथियह मंगल तीरथ पंथ । ज सुखेहिं किर मइ कलिय मुकति नारि सीमंथ । नारि अछइ घरि घरि घणिय जणणी सा परु धन्न जासु कुक्खि उत्पन्न नरु संचइ तीरथ पुन्नु ॥१४॥ इय जयसागर समरिय ताय, सवालख पव्वय जिणराय । ता अम्हारिय पूगी आस, हउं बोलउं जिण सासण दास ॥१५॥ इणि समरणि नासइ नरग जोग, इणि समरणि लाभइ सरग भोग । इणि कारणितुम्हि भो भविय आज,इहु पभणहु,निसुणहु,सरई काज।१६। इय नगरकोट पमुक्ख ठाणिहिं जे य जिण मई वंदिया। ते वीरलउकड देवि जालामुखिय मन्नइ वंदिया। अन्नेवि जे केवि सग्गि महियलि नागलोइहि संठिया। कर जोड़ि ते सवि अज्ज वंदउं फुरउ रिद्धि अचिंतिया ॥१७॥ इति श्री नगरकोट्ट-महातीर्थ-चैत्य परिपाटी ॥ ॥ कृतिरियं श्री जयसागरोपाध्यायानाम् ॥
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